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तीसरा प्रकाश
१६ म होने से हेतुलक्षण से रहित है और कुछ रूपों के होने से हेतु के समान प्रतीत होते हैं ऐसा बधान है।
नयायिकों के द्वारा माना गया हेतु का यह पांचरूपता लक्षण भी मुक्तिसङ्गत नहीं है, क्योंकि पक्षधर्म से शून्य भी कृतिका का उदय शकट के उपयरूप साध्य का हेतु देखा आता है। प्रतः पांचरूपता 5 प्रव्याप्ति दोष से सहित है।
जूसरी बात यह है, कि नपायिकों ने हो केवलान्वयी पोर केवलव्यतिरेकी इन दोनों हेतुनों को पांचहपता के बिना भी गमक ( शापक ) स्वीकार किया है। यह इस प्रकार से है उन्होंने हेतु के तीन भेद माने हैं...१ अन्वयव्यतिरेको, २ केवलान्वयो मोर 10 ३ केवलम्यतिरेकी।
१. उनमें जो पौध रूपों से सहित है वह अन्वयव्यतिरेकी है। बसे—'शम्ह प्रनित्य है, क्योंकि इतक है—किया जाता है, जो जो किया जाता है वह वह अनिरय है, जैसे घड़ा, जो जो मनित्य नहीं होता वह वह किया नहीं जाता, मैसे-पाकाश, भौर किया जाता है यह शर, 15 इसलिए अनिरय हो है।' यहाँ शरद को पक्ष करके उसमें प्रनित्यता सिद्ध की जा रही है। अनित्यता के सिद्ध करने में किया जाना' हेतु है। वह पलभूत शब्द का धर्म है। अतः उसके पक्षधर्मस्व है। सपा पटाविकों में रहने पौर विपक्ष प्रकाशादिक में न रहने से सपासत्त्व और विपक्ष व्यापत्ति भी है। हेतु का विषय साध्य (अनित्यत्व) 20 किसी प्रमाण से बाषित न होने से प्रवाधितविषयत्व और प्रतिपक्षी साभन न होने से असत्प्रतिपक्षत्व भी विद्यमान है। इस तरह किया मामा हेतु पांचों रूपों में विशिष्ट होने के कारण मन्वयव्यति
२. जो पल मौर सपक्ष में रहता है सपा विपक्ष से रहित है वह 25