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तोसरा प्रकाश
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समाधान-नहीं; सपक्ष के एक देश में रहने वाला भी हेतु है
क्योंकि पहले कह आये हैं कि
में
क्योंकि धूमहेतु का
जगह हेतु का रहना सपक्ष सत्त्व है।' वाले स्थानों में धूप के न रहने पर भी रसोई घर आदि सपक्षों में रहने से उसके सपक्षसत्व रहता ही है। विपक्षध्यावृत्ति भी उसके 5 है, क्योंकि धूम तालाब आदि सभी विपक्षों से व्याक्त है- वह उनमें नहीं रहता है। अबाधितविषयत्व भी है, जो अग्निरूप साध्य विषय है यह प्रत्यक्षादिक नहीं है । प्रसत्प्रतिपक्षत्व भी है, क्योंकि अग्नि के प्रभाव का साधक तुल्य बल वाला कोई प्रमाण नहीं है । इस प्रकार पाँचों रूपों का 10 सद्भाव ही धूम हेतु के अपने साध्य की सिद्धि करने में प्रयोजक ( कारण ) है । इसी तरह सभी सम्यक् हेतुनों में पांचों रूपों का सद्भाव समझना चाहिए ।
प्रमाणों से बाधित
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इनमें से किसी एक रूप के न होने से ही प्रसिद्ध, विरुद्ध अनंकान्तिक, कालात्ययापदिष्ट और प्रकरणसम नाम के पाँच हेत्वाभास 15 प्रापन्न होते हैं। इसका खुलासा इस प्रकार है
जम
इसलिए अङ्गाररूप प्रग्नि
१. पक्ष में जिसका रहना अनिश्चित हो वह श्रसिद्ध हेत्वाभास है । जैसे— 'शब्द अनित्य ( नाशवान् ) है, क्योंकि च इन्द्रिय से जाना जाता है। यहाँ 'चक्षु इन्द्रिय से जाना जाना' हेतु पक्षभूत शब्द में नहीं रहता है। कारण, शब्द श्रोत्रेन्द्रिय से जाना जाता है। 20 इसलिए पक्षधर्मस्व के न होने से 'चक्षु इन्द्रिय से जाना जाता हेतु प्रसिद्ध हेत्वाभास है ।
२. साध्य से विपरीत-- साध्याभाव के साथ जिस हेतु की व्याप्ति हो वह विरुद्ध हेत्वाभास हैं। जैसे— 'शब्द नित्य है, क्योंकि वह फुलक है— किया जाता है' यहाँ 'किया जाना' रूप हेतु अपने साध्यभूत 25