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________________ १६६ न्याय-दीपिका रहित है। फिर भी वह अन्यथानुपपत्ति के होने से (कृत्तिका के उपय हो जाने पर ही शकट का उदय होता है और कृत्तिका के उदय न होने पर शकट का उदय नहीं होता है ) शकर के उदयरूप साध्य का मान कराता हो है। अतः बौद्धों के द्वारा माना गया हेतु का चरप्प 5 लक्ष | अव्याप्ति दोष सहित है । नयाधिकसम्मत पचिहत्य हेतु का कथन ग्रोर उसका निराकरण नयायिक पांचरूपता को हेतु का लक्षण कहते है। वह इस तरह से है-पक्षधर्मत्व, सपक्षमस्व, विपक्षम्यावृत्ति, प्रवाषितविषयत्व और 10 असत्प्रतिपक्षत्व ये पांच रूप हैं। उनमें प्रथम के तीन रूपों के लक्षण कहे जा चुके हैं। शेष दो के लक्षण यहाँ कहे आते हैं। साध्य के प्रभाव को निश्चय कराने वाले बलिष्ठ प्रमाणों का न होना पनाधितविषयत्व है और साध्य के प्रभाव को निश्चय कराने वाले समान बस के प्रमाणों का न होना असरप्रतिपक्षस्व है। इन सबको उदाहरण द्वारा 15 इस प्रकार समझिपे --यह पर्वत अग्निवाला है, क्योंकि घूमधासा है, जो जो धूम वाला होता है वह वह अग्निवाला होता है, जैसे-रसोईघर, जो जो अग्निवाला नहीं होता, वह वह मवाला नहीं होता, जैसे - तालाब, चूंकि यह धूमवाला है, इसलिए अग्निवाला जरूर हो है। इस पांच अवयवरूप अनुमान प्रयोग में अग्निरूप बाध्यधर्म से युक्त 20 पर्वतरूप धर्मों पक्ष है, 'धूम' हेतु है। उसके पक्षषमता है, क्योंकि वह पक्षभूत पवंत में रहता है। सपक्ष सत्व भी है, क्योंकि सासभूत रसोईघर में रहता है। शङ्का-किन्हीं सपक्षों में धूम नहीं रहता है, क्योंकि भङ्गाररूप अग्निवाले स्थानों में पुत्रों नहीं होता । अतः सपक्षसस्व हेतु का 25 रूप नहीं है।
SR No.090311
Book TitleNyayadipika
Original Sutra AuthorDharmbhushan Yati
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size5 MB
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