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________________ न्याय-दीपिका हैं इत्यादि व्यपदेश होता है । तात्पर्य यह कि परार्थानुमान वाक्य परार्थानुमान ज्ञान के उत्पन्न करने में कारण होता है, अतः उसको उपचार से परायांनुमान माना गया है। परार्थानुमान को प्रशासम्पत्ति और उसके प्रत्ययों का 5 प्रतिपादन... इस परार्थानुमान के अङ्गों का कथन स्वार्थानमान की तरह जानना चाहिए । अर्थात्-उसके भी धर्मों, साध्य प्रौर मापन के भेद से तीन अथवा पक्ष और हेतु के भेद से दो अङ्ग हैं। और परा धानुमान में कारणीभूत शक्य के दो अवयव है-१ प्रतिशा और ___ 10 २ हेतु । धर्म और धर्मों के समुदाय रूप पक्ष के कहने को प्रतिज्ञा कहते हैं। जैसे-'यह पर्वत अग्नि वाला है।' साध्य के अविनाभाषी साधन के बोलने को हेतु कहते हैं। जैसे-धूम वाला अन्यथा हो नहीं सकता' अथवा 'अग्नि के होने से ही धूम वाला है। इन दोनों हेतु-प्रयोगों में केवल कथन का भेद है। पहले हेतु-प्रयोग में तो 15 'धूम अग्नि के बिना नहीं हो सकता' इस तरह निषेधरूप मे कयन किया है और दूसरे हेतु-प्रयोग में 'अग्नि के होने पर ही धूम होता है' इस तरह सद्भावरूप से प्रतिपादन किया है। अर्थ में भेद नहीं है । दोनों ही जगह अविनाभावी साधन का कयन समान है। इसलिए उन दोनों हेतुप्रयोगों में से किसी एक को हो बोलना चाहिए । 20 दोनों के प्रयोग करने में पुनरुक्ति पालो है। इस प्रकार पूर्वोक्त प्रतिज्ञा और इन दोनों हेतु प्रयोगों में से कोई एक हेतु-प्रयोग, ये दो ही परार्यानुमान वाक्य के अवयव हैं—प्रङ्ग हैं; क्योंकि व्युत्पन्न (समझदार) श्रोता को प्रतिज्ञा और हेतु इन दो से ही मनुमिनि अनुमान ज्ञान हो जाता है । 25 यायिकाभिमत पाँच प्रवयवों का निराकरण नैयायिक परार्थानुमान घाक्य के उपर्युक्त प्रतिक्षा और हेतु
SR No.090311
Book TitleNyayadipika
Original Sutra AuthorDharmbhushan Yati
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size5 MB
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