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________________ १६६ न्याय-दीपिका निर्मलता है और वह पूर्ण निर्मलता केवलज्ञान की तरह अवधि और मनः पर्यय में भी अपने विषय में विद्यमान है। इसलिये वे दोनों भी पारमायिक हो हैं । अवधि आदि तोनों ज्ञानों को प्रतीन्द्रिय प्रत्यक्ष न हो सकने की 5 शङ्का और उसका समाधान शङ्का- -अक्ष नाम चक्षु श्रादि इन्द्रियों का है, उनकी सहायता लेकर जो ज्ञान उत्पन्न होता है उसे ही प्रत्यक्ष कहना ठीक है, अन्य (इन्द्रियनिरपेक्ष अवधिज्ञानादिक) को नहीं ? समाधान – यह शङ्का ठीक नहीं है। क्योंकि प्रात्मा मात्र की 10 अपेक्षा रखने वाले और इन्द्रियों की अपेक्षा न रखने वाले भी अवधि, मनः पर्यय और केवलज्ञान को प्रत्यक्ष कहने में कोई विरोष नहीं है। कारण, प्रत्यक्षता का प्रयोजक स्पष्टता हो है, इन्द्रियजन्यता नहीं। और वह स्पष्टता इन तीनों ज्ञानों में पूर्णरूप से है । 15 इसीलिये मति, श्रुत, अवधि, मन:पर्यय और केवल इन पाँच ज्ञानों में 'आद्ये परोक्षम्' [ ० सू० १-११ ] सू० १-१२ ] इन दो सूत्रों द्वारा प्रथम के ज्ञानों को परोक्ष तथा श्रवधि, मन:पर्यय और को प्रत्यक्ष कहा है । और 'प्रत्यक्षमन्यत्' [ १० मति और श्रुत इन दो केवल इन तीनों शानों शङ्का - फिर ये प्रत्यक्ष शब्द के वाच्य कैसे है ? अर्थात् इनको 20 प्रत्यक्ष शब्द से क्यों कहा जाता है ? क्योंकि प्रक्ष नाम तो इन्द्रियों का है और इन्द्रियों की सहायता से होने वाला इन्द्रियजन्य ज्ञान हो प्रत्यक्ष शब्द से कहने योग्य है ? समाधान - हम इन्हें रूढि से प्रत्यक्ष कहते हैं । तात्पर्य पह फि प्रत्यक्ष शब्द के व्युत्पत्ति ( यौगिक) प्रथं की अपेक्षा न करके प्रवधि 25 आदि ज्ञानों में प्रत्यक्ष शब्य को प्रवृत्ति होती है और प्रवृत्ति में
SR No.090311
Book TitleNyayadipika
Original Sutra AuthorDharmbhushan Yati
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size5 MB
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