SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 284
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५६ दूसरा प्रकाश घटज्ञान का घट ही विषय है, पट नहीं है ? हम तो ज्ञान को अर्थजन्य होने के कारण अर्थजन्यता को शानमें विषयका प्रतिनियामक मानते हैं और जिससमान पैदा होता है उसोको विषय करता है, अन्य को नहीं, इस प्रकार व्यवस्था करते हैं। किन्तु उसे अाप नहीं मानते हैं ? समाधान - हम योग्यता को विषय का प्रतिनियमक मानते हैं। जिस शान में जिस प्रर्य के प्रहण करने की योग्यता (एक प्रकार की शक्ति) होती है वह शान उस ही अर्थ को विषय करता है - अन्य को नहीं। शंका-योग्यता किसे कहते हैं ? समाधान-अपने प्रावरण (मानको ढकने वाले कर्म) के क्षयोपसमको योग्यता कहते हैं। कहा भी है :-'अपने प्रावरण कर्म के अयोपशमरूप योग्यता के द्वारा ज्ञान प्रत्येक पदार्थ की व्यवस्था करता है। तात्पर्य यह हुआ कि प्रात्मा में घटज्ञानावरण कर्म के हटने से उत्पन्न हुमा घटशान घट को ही विषय करता है, पट को नहीं । इसी 15 प्रकार दूसरे पटादिज्ञान भी अपने अपने क्षयोपशम को लेकर अपने अपने ही विषयों को विषय करते हैं। प्रतः ज्ञान को अयंजन्य मानना अनावश्यक और प्रयुक्त है। 'मान प्रर्य के प्राकार होने से अर्थ को प्रकाशित करता है। यह मान्यता भी उपर्युक्त विजेशन से स्पंडित हो जाती है। क्योंकि दीपक, 20 मणि मादि पदार्थों के प्राकार न होकर भी उन्हें प्रकाशित करते हुये देखे जाते हैं। अतः अर्थाकारता और प्रर्यजन्यसा ये दोनों ही प्रमाणता में प्रयोजक नहीं हैं। किन्तु अर्थाव्यभिचार ही प्रयोजक है। पहले जो सपिकल्पक के विषयभूत सामान्य को प्रपरमार्थ बता कर सरिकस्पक का खाउन किया है वह भी ठीक नहीं है। क्योंकि किसी 25
SR No.090311
Book TitleNyayadipika
Original Sutra AuthorDharmbhushan Yati
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy