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पहला प्रकाश
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विरुद्ध अनेक पक्षोंका प्रदगाहन करनेवाले शानको संशय कहते हैं। जैसे—यह स्थाणु ( कुंठ } है या पुरुष है ? यहाँ 'स्थाणुत्व, स्थाणुस्वाभाव, पुरुषत्व और पुरुषत्वाभाच' इन चार अथवा 'स्थानत्व और पुरुषस्व' इन दो पक्षोंका प्रवगाहन होता है। प्रायः संध्या प्रादिके समय माद प्रकाश होनेके कारण दूरसे मात्र स्थाणु और पुरुष दोनों में सामान्यरूपसे रहनेवासे ऊंचाई प्रादि साधारम धर्मोके देखने और स्थानुगत टेढ़ापन, कोटरत्व प्रावि तथा पुरुषगत शिर, पर प्रादि विशेष धकि साधक प्रमाणोंका प्रभाव होनेसे नाना कोटियोंको अवगाहन करनेवाला यह संशय जान होता है।
विपरीत एक पक्षका निश्चय करनेवाले ज्ञानको विपर्यय कहते हैं। जैसे—सोपमें 'यह चांदी है' इस प्रकारका मान होना। इस मानमें सवृशता धादि कारणोंसे सोपसे विपरीत चांदीमें निश्चय होता है। अतः सोपमें सीपका जान न करनेवाला और चाँदीका निश्चय करनेवाला यह शान विपर्यय माना गया है। ___क्या हैं इस प्रकारके श्रनिश्चयरूप सामान्य ज्ञानको प्रनष्यव. साप कहते हैं। जैसे—मार्गमें चलते हुए तुण, कंटक आदिके स्पर्श हो जानेपर ऐसा मान होना कि 'यह क्या है। यह मान नाना पकोंका अवगाहन न करनेसे न संशय है और विपरीत एक पक्षका निश्चय न करनेसे न विपर्यय है । इसलिए अपत दोनों मानोंसे यह मान पृषक ही है।
ये तीनों मान अपने गृहीत विषयमें प्रमिति—पयार्थताको उत्पन्न न करमेके कारण अप्रमाण हैं, सम्यमान नहीं है । अतः 'सम्यक' परसे इनका व्यवच्छेद हो जाता है । और 'ज्ञान' पबसे प्रमाता, प्रमिति और ' शबसे प्रमेषको व्याबत्ति हो मातो है । यद्यपि निर्दोष होनेके कारण 'सम्ममाव