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न्याय-दीपिका
मूलम', मन्दिस-बलात्कारगणके मारस्वतगच्छमें
पद्मनन्दी (कुन्दकुन्दाचार्य)
धर्म भूपण भट्टारका
अमरकीनि- यायं (जिनके शिष्यों के शिक्षक दीमक
सिदनन्दी बनी थे) थींवर्मभूपण भट्टारक II (मिहनन्दोवनीके सपर्मा)
बळमान मुनीश्यर: (निदानन्दीयतीके वरणगेवका )
धर्मभूषण यति ! (ग्रन्थकार) यह शिलानेन शकसम्वत् १३०७ में उत्तीर्ण हुआ है। इसी प्रकार का मिलानेव' :१: 1. जो विध्यागी पर्वतके अखण्ड वागिलुके पूर्वकी और ग्थिन चट्टान पर खुदा हुना है और जो गक सं० १२६५ में उत्कीर्ण हुपा है। उममें इस प्रकार परम्रा दी गई है :
१ "थीम परमगम्भीर-स्यावादामोध-लाञ्छनं ।
जीवान् बलोक्यनाथम्य शासनं जिन-शासनं ॥१॥ श्रीमुल-सङ्घपयः पयोधियर्द्धनमुघाकराः श्रीक्लात्कारगणकमल-कलिकाकलाप-विवचन दिवाकराः' 'वनवा "तकोतिरेवानमियाः राय-भुजसुवाम....''प्राचार्य महा वादिबादीश्वर राय-वादि-पितामह सकनविद्वज्जन-चक्रवत्ति देवेन्द्रविशाल-कीति-देवा लमिप्या: भट्टारकश्रीशुभकोतिदेवारमायाः कलिकाल गच्चंत्र-भट्टारक-धम्म भूषगवेवाः नत्यिप्या: श्रीअमरकोाचार्याः नरिमाया: मानि तिनपाणां प्रथमानल......... रमित नुन-पा........... यमुल्लासकः ....... देमक'चायपत्रिपुना याचवा''... 'करण-मानण्डमण्ड लानां भट्टारक