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________________ २४ ] नियमसार नलिपुटपेयेन मुक्तिसुन्दरोमुखदर्पणन संसरणवारिनिधिमहावर्तनिमग्नसमस्तभव्यजनता. दत्तहस्तावलम्बनेन सहजवैराग्यप्रासादशिखरशिखामणिना प्रक्षणामोक्षप्रासावप्रथमसोपानेन स्मरभोगसमुद्भूताप्रशस्तरागांगारःपच्यमानसमस्तदीनजनतामहापलेशनिर्णाशनसमर्थसजलजलदेन कथिताः खलु सप्ततत्त्वानि नव पदार्थाश्चेति । तथा चोक्तं श्रीसमन्तभद्रस्वामिभिः वाला है, सहज-स्वाभाविक वैराग्य रूपी महल के शिखर का चूड़ामणि रत्न है, अक्षुण्ण-जो कभी नष्ट नहीं होगा ऐसा मोक्ष रूपी उत्तम भवन में पहुंचने के लिये पहली सीढ़ी है और कामभोग से उत्पन्न हुये जो अप्रशस्त राग रूपी अंगारे उनसे झुलसते हुये दीन प्राणियों के महान क्लेश को जड़मूल से नष्ट करने में समर्थ ऐसा सजल मेघ है । इन विशेषणों से विशिष्ट ऐसे इस परमागम के द्वारा निश्चित रूप से सात तत्त्व और नव पदार्थ कहे गये हैं । विशेषार्थ-जिनेन्द्र भगवान के मुखकमल से निकली हुई वाणी को परम आगम कहा है और उस परमागम को अमृत कहा है क्योंकि अमृत के समान यह भव्य जीवों को सन्तुष्ट करने वाला है । इसे दर्पण कहा है क्योंकि इस आगम रूपी दर्पण में मुक्ति का भी अवलोकन हो जाता है । इसे हस्ताबलम्बन कहा है क्योंकि संसार समुद्र में डूबे हुये प्राणियों को सहारा देकर मोक्ष में पहुंचाता है । इसे शिखामणि कहा है क्योंकि वैराग्य महल के शिखर का शेखर है, इसे प्रथम सीढ़ी कहा है क्योंकि इसके बिना मोक्ष महल पर चढ़ नहीं सकते हैं और इसे सजल मेघ कहा है क्योंकि कामभोग या इष्ट बियोग, अनिष्ट संयोग आदि अनेकों मानसिक, शारीरिक और ग्रागंतुक दु:खों से उत्पन्न हुये संताप को क्षणमात्र में शमन करने में समर्थ है ऐसे माहात्म्य से युक्त इस परमागम से सप्त तत्त्व, नव पदार्थ का वर्णन किया जाता है वहीं 'तत्त्वार्थ' है । इस प्रकार प्राप्त, पागम और तत्त्वार्थ का श्रद्धान करना सम्यग्दर्शन है। पागम के लक्षण में श्री समन्तभद्र स्वामी ने भी कहा है
SR No.090308
Book TitleNiyamsar
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages573
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size13 MB
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