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________________ १८ ] नियमसार तथा चोक्तं श्रीविद्यान न्दिस्वामिभिः तथाहि - ( मालिनी ) "अभिमतफल सिद्धेरभ्युपायः सुबोधः स च भवति सुशास्त्रातस्य चोत्पत्तिराप्तात् । इति भवति स पूज्यस्तत्प्रसादात्प्रबुद्धनं हि कृतमुपकारं साधयो विस्मरति ।। " ( मालिनी ) शतमखशत पूज्यः प्राज्य सद् बोधराज्य: हमरगिरिसुरनाथः प्रास्तदुष्टाधयुधः । पदनतवनमाली भव्यपद्यांशुमाली दिशतु शमनिशं नो मिरानन्दभूमिः ॥ १३ ॥ उसी प्रकार श्री विद्यानंद स्वामि ने भी कहा है श्लोकार्थ - " अभिमत फल की सिद्धि का उपाय सम्यग्ज्ञान है, वह सम्यग्ज्ञान सुशास्त्र से होता है और सुशास्त्र की उत्पत्ति प्राप्त से होती है, इसलिये उनके प्रसाद से ही इप्ट - मोक्ष की सिद्धि होने से वे प्राप्त प्रबुद्ध-ज्ञानी जनों के द्वारा पूज्य होते हैं क्योंकि साधुजन किये हुये उपकार को कभी नहीं भूलते हैं ।" ( १३ ) श्लोकार्थ जो सो इन्द्रों से पूज्य हैं जिन्होंने उत्कृष्ट सद्द्बोध के राज्य - केवलज्ञान को प्राप्त कर लिया है जो काम रूपी पर्वत को नष्ट करने के लिये इन्द्र तुल्य हैं, दुष्ट प्रष्ट कर्म के समूह को जिन्होंने नष्ट कर दिया है, श्रीकृष्ण जिनके चरणों में नत हैं और जो भव्य जोव रूपी कमलों को प्रफुल्लित करने के लिये सूर्य के समान हैं, प्रानंद की भूमि- -स्थान स्वरूप ऐसे नेमिनाथ भगवान हम सभी को सदैव सुख प्रदान करें । इस कलश की गाथा में १८ दोष रहित अरिहंत भगवान् का वर्णन किया गया है अतएव उनके गुणों से ओत प्रोत होकर टीकाकार ने नेमिनाथ भगवान् की स्तुति की है ।
SR No.090308
Book TitleNiyamsar
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages573
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size13 MB
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