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________________ ५२८ ] नियमसार अशुद्ध २०३ २०७ २१३ १२१ कुन्दकुम्ददेव के विराहरण निविकल्पयम परमति: कुरदकुन्ददेव ने विराहणं निर्विकल्पमय परमान: २२३ प्राकार प्राकर २३२ बदहा ফানুস बदमहा शश्वत् २४६ जोवेग प्रलंघन् २६३ प्रवसेस प्रसंधयन् प्रवसं मोहयाद: २६८ मोठ्यादा तदेवा तदेवा चेतत् भेदात्रिविधम् २७५ देत्तत् भेदारित्रविध कारण बनते हैं। २७८ बनते हैं प्रसवत रिपु पूणिमा को २७५ मासक्त रिपू पूर्णिमा के २८० २६१ ध्यावति ध्यायति २९४ शुदी सुती २९५ मुनि मुनि को मुक्त नि मुक्त नि पराणा ककुमंडल अनादिविद्या परितप्त परागाककुम्भंडलं wৱৰিয়া परितृप्त १०
SR No.090308
Book TitleNiyamsar
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages573
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size13 MB
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