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________________ नियमसार ९. गाणं परप्पयासं ववहारपएण दसणं तम्हा । अप्पा परप्पयासो, ववहारणएण दंसणं तम्हा ।। १६४।। १०. गाणं अण्पपयासं, णिच्छयणयएण दसणं तम्हा । अपा अप्पपयासो, णिच्छयरण्यएण सणं तम्हा ।। १६५।। कुछ विशेष गाथायें : अन्य करणानुयोग ग्रन्थ से जानने की प्रेरणा--. च उदह भेदा भणिदा, तेरिच्छा सुरगणा च उन्भेदा । एदेसि वित्थारं लोयविभागेसु णादच्वं ।। १७ ।। इस काल में ध्यानमय क्रियायें शक्य नहीं हैं जदि सक्कदि कादु जे. पडिकमणादि करेज्ज झाणमयं । सत्तिविहीणो जा जइ, सद्दहणं चेव कायब्वं ।।१५४।। मभी तीर्थकों ने योगभक्ति की है उसहादिजिणरिदा एवं काऊण जोगवरभसि । णिब्वुदिगुहमावण्णा, तम्हा धरु जोगवत्ति ।। १४०।। मभी महापुरुषों ने आवश्यक के बल से केवलज्ञान पाया है सन्त्रे पुराणपुरिसा, एवं आवासयं य काऊण 1 अपमत्तपहुदिठाणे, पडिवज्ज य केवली जादा ॥१५८।। यह गाथा समयसार, प्रवचनसार और पंचास्तिकाय में भी आई है अरसमरूबमगंधं, अव्वत्तं चेदणागुणमसदं । जाण अलिंगग्गहणं, जीव मणिहिट्ठसंठाणं ॥४६।।
SR No.090308
Book TitleNiyamsar
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages573
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size13 MB
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