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________________ श्री कुन्दकुन्दस्वामिने नमः श्रीमद्भगवत्कुन्दकुन्दाचार्यदेवप्रणीत नियमसार श्रीपद्मप्रभमलधारिदेव विरचित तात्पर्यवृत्ति सहित --१ जीव अधिकार (मालिनी) स्वयि सति परमात्मन्मादृशान्मोहमुग्धान कथमतनुवशत्वान्बुद्ध केशान्यजेऽहम् । सुगतमगधरं वा वागघीशं शिवं वा जितभवमभिवन्दे भासुरं श्रोजिनं वा ॥१॥ - - - - - -- - - - - - - - -- - (१) इलोकार्थ-हे परमात्मन् ! आपके होते हुए मैं मुझ जैसे ( संसारी) तथा मोह से मुग्ध और कामदेव के वशीभूत हुए ऐसे ब्रह्मा-विष्णु-महेश को कैसे पूज सकता हूं ? अर्थात् नहीं पूज सकता हूं । जिन्होंने भव-संसार अथवा भव-कामदेव को जीत लिया है मैं उनकी वंदना करता हूं। वे चाहे सुगत हों, गिरिधर हों अथवा ब्रह्मा हों, शिव हों अथवा शोभायमान श्री जिनेंद्र भगवान हों ।
SR No.090308
Book TitleNiyamsar
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages573
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size13 MB
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