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________________ निश्चय-प्रत्याख्यान अधिकार [२९६ विशेषार्थ---साधु देववंदना, गुरुवंदना करके शरीर की शुद्धि करके आहार के मए जाते हैं । श्रावक के द्वारा पड़गाहन होने पर वे उनके घर में प्रवेश करते हैं, पश्चात् नवधाभक्ति होने के बाद वे सिद्धभक्तिपूर्वक प्रत्याख्यान की निष्ठापना करते हैं और चतुरंगुल पाद के अंतराल से खड़े होकर आहार करते हैं। यथा--'सभी प्रतिज्ञा पूर्ण हो चुकने पर सिद्ध भक्तिपूर्वक पूर्व दिन के ग्रहण किये हुए प्रत्याख्यान का त्याग इ. करके......खड़े होकर आहार करते हैं अर्थात् कुछ लोग ऐसा कहते हैं कि गुरु के पास से प्रत्याख्यान त्याग करके आहारार्थ जावें सो गलत है क्योंकि मार्ग में प्रत्याख्यान बिना रहना उचित नहीं है, इसी बात को यहां स्पष्ट किया है। जैसे वहां प्रत्याख्यान का निष्ठापन कर आहार ग्रहण करें वैसे ही वहीं पर बीघ्र ही भोजन के अनन्तर लघु सिद्धभक्तिपूर्वक प्रत्याख्यान ग्रहण कर लेवें, पुनः आकर गुरु के पास लघु सिद्धयोगि . भक्ति पढ़कर प्रत्याख्यान लेब । यदि वहां ग्रहण नहीं करे और मार्ग में जाते हुए अकस्मान् विसी कारण मे मरण हो जावे तो अप्रत्याग्यान हो जावेगा। यहां इस अधिकार में व्यवहार प्रत्याख्यान करने वाले ऐसे महामुनियों के निम्नय प्रत्याख्यान का वर्णन है, और यह निश्चय रत्नत्रय में ही घटित होता है । व्यवहार प्रत्याख्यान जिनके है उनके निश्चय है और नहीं भी है, किंतु जिनके निश्चय प्रत्याख्यान है उनके व्यवहार प्रत्याख्यान अवश्य हो चुका है, क्योंकि व्यवहार के बिना निश्चय नहीं हो सकता है । इस अधिकार को पढ़कर नित्य ही निश्चय प्रत्याख्यानरूप [ शुद्ध आत्मा की भावना करनी चाहिये । १. वर्णी पूर्णप्रतिज्ञोऽथ सिद्ध भक्ति विधाय तत् । प्रत्याख्यान विनिष्ठाय प्रेरितो भक्तदातृभिः ।।११६॥ प्राचारसार पृ. १३४ ] हयं त्याज्यं साधुनः निष्ठाप्यमित्यर्थः किं तत् ? प्रत्याख्यानादिक मुपोषित बा । क्व ? अशनादौ भोजनारंभे । कया सिद्ध भक्त्या । ....सिख भक्त्या प्रतिष्ठाप्यं साधुनाः.... [ अनगार धर्मामृत पृ. ६४६] २. प्रत्याख्यानं विना देवात् क्षीणायुः स्याद्विराधकः । । तदल्पकालमप्यरुपमप्यर्थ पृथु चंडवत् ।।३०।। [प्रन धर्मामृत पृ. ६५०]
SR No.090308
Book TitleNiyamsar
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages573
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size13 MB
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