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________________ निश्चय-प्रत्याख्यान आधकार [ २८१ रिएक्कसायस्स दंतस्स' सरस्स ववसायिरगो। संसारभयभीदस्स पच्चक्खाणं सुहं हवे ॥१०॥ निःकषायस्य दान्तस्य शूरस्य व्यवसायिनः । संसारभयभीतस्य प्रत्याख्यानं सुखं भवेत् ॥१०५।। निष्कषाय और शूर, इन्द्रिय दमन करे हैं। निहित का व्यवसाय, हो जो नित्य करे हैं ।। भव दुःख से भयभीत, ध्यान लीन जो हो । निश्चय प्रत्याख्यान, उनको सुख से होवे ।।१०५।। निश्चयप्रत्याख्यानयोग्यजीवस्वरूपाख्यानमेतत । सकलकषायकलंकपकविमुक्तस्य निखिलेन्द्रियव्यापारविजयोपाजितपरमदान्तरूपस्य अखिलपरीषहमहाभटविजयोपाजितनिजशूरगुणस्य निश्चयपरमतपश्चरणनिरतशुद्धभावस्य संसारदुःखभीतस्य व्यवहारेण - -- .. ....... --- - - -- - - -- भावार्थ--इस समभाव के बिना अंत: मुख प्रगट नहीं हो सकता है, तथा इसके बिना मुनिराज सुशोभित नहीं होते हैं इसलिये जैसे यह मुनिवरों का भूषण है वैसे ही जगत् का भी भूषण है । वीतरागता के बिना जगत में भान्ति का लेश नहीं हा सवाना है। गाथा १०५ अन्वयार्थ-[निःकषायस्य] ऋपाय रहित, [ दान्तस्य ] इन्द्रियों का दमन करने वाले, [शूरस्थ व्यवसायिनः] शूरवीर, उद्यमशील और [ संसार भय भीतस्य ] ससार से डरने वाले ऐसे साधु के [सुखं प्रत्यायानं] मुखमय प्रत्याख्यान, [ भवेत् ] होता है । i टोका-निश्चय प्रत्याख्यान के योग्य ऐसे जीव के स्वरूप का यह कथन है । सम्पूर्ण कषाय कलंक रूपी पंक से विमुक्त, संपूर्ण इन्द्रियों के व्यापार के विजय से उपाजित की है परम दमनशीलता जिन्होंने, अखिल परीपह रूपी महायोद्धाओं के विजय से प्रगट किया है अपना शूर गुण जिन्होंने निश्चय परम तपश्चरण में लीन १. दांतस्स (क) पाठान्तर
SR No.090308
Book TitleNiyamsar
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages573
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size13 MB
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