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________________ निश्चय--प्रत्याख्यान अधिकार [ २७७ तथा चोक्त प्रवचनसारव्याख्यायाम् । (वसंततिलका) "द्रव्यानुसारि चरणं चरणानुसारि द्रव्यं मियो द्वयमिदं ननु सव्यपेक्षम् । . तस्मान्मुमुक्षुरधिरोहतु मोक्षमार्ग . द्रव्यं प्रतीत्य यदि वा चरणं प्रतीत्य ।।" तथा हि चारित्र शुद्धात्मा की भावना स्वरूप है और अभेद अनुपचार चारित्र स्वभाव में निश्चल अवस्थारूप स्थितिमयी है । पंचमहाव्रत आदि भेदोपचार चारित्र हैं, जो कि छ, गुणस्थानवर्ती मुनि के होता है । स्वस्थान अप्रमन वालं गातम गुणम्यानबर्ती के अभापचार चारित्र होता है, और सानिगय अप्रमननामक सप्तम गुणम्यान में लेकर बान्हव तक अभेदानुपचार चारित्र होता है. ऐसा समझना । उसीप्रकार में प्रवचनमार की व्यान्या में भी कहा है "श्लोकार्थ—'चरण-चारित्र. द्रव्य का-आत्मतत्व का अनुसरण करने वाला होता है और द्रव्य, चरण का अनुगरण व रनेवाला होता है। ये दोनों परस्पर एक. दूसरे की अपेक्षा को रखने वाले हैं. इसलिये मुमुक्ष-साधु द्रव्य का आश्रय लेकर अथवा चरण का आश्रय लेकर मोक्षमार्ग में आगेहण करो।" भावार्थ-आन्मद्रव्य को मिल करनेवाला चारित्र है और चारित्र के अनुसार प्राप्त होने वाला आत्मद्रव्य है । जहां आत्मद्रव्य है वहीं पर चारित्र होता है, आत्मद्रव्य के अवलम्बन के बिना चारित्र नहीं होता है, इसीलिये आचार्यश्री ने कह दिया है कि चाहे द्रव्य का अबलम्बन लेवो चाहे चारित्र का, दोनों ही मोक्ष के कारण हैं । उसीप्रकार--[टीकाकार मुनिराज यतियों को संयम में सावधान रहने की प्रेरणा देते हुए कहते हैं---] १. प्रद. को श्री अमृत चन्द्रमूरि कृत टीका का १२ वा श्लोक । १
SR No.090308
Book TitleNiyamsar
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages573
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size13 MB
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