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________________ .. . - व्यवहारिक शिनर [ १७७ थीराजचोरभत्तकहादिवयणस्स पावहेउस्स । परिहारो वयगुत्ती, अलियादिणियत्तिवयणं वा ॥६७॥ स्त्रीराजचौरभक्तकथादिवचनस्य पापहेतोः । परिहारो वागुप्तिरलोकादिनिवृत्तिवचनं वा ॥६७॥ स्त्रीकथा व राजकथा चोर का कथन । भोजनकथा इत्यादि पाप हुनु जो वचन ।। परिहार करें इनका वचन गुप्ति पालने । या झूठ आदि वचनों को भी वे टालते ।। ६७।। इह वारगुप्तिस्वरूपमुक्तम् । प्रतिप्रवृद्धकामः कामुकजनैः स्त्रीणां संयोगविप्रलंभजनितविविधवचनरचना कर्तव्या श्रोतव्या च मैव स्त्रीकथा । राज्ञां युद्धहेतूपन्यासो राजकथाप्रपंचः । चौराणां चौरप्रयोगकथनं चौरकथाविधानम् । अतिप्रवृद्धभोजनप्रीत्या विचित्रमंडकावलीखण्डदधि खंडसिताशनपानप्रशंसा भक्तकथा । आसामपि कथानां परि. हारो वाग्गुप्तिः अलीकनिवृत्तिश्च वाग्गुप्तिा । अन्येषां अप्रशस्तवचसा निवृत्तिरेव वा बागुप्तिः इति । - - - - - - -.---. .. गाथा ६७ अन्वयार्थ-[पापहेतोः] पाप के कारणभूत [स्त्रीराज चौर भक्त कथादिवचनस्य] स्त्री कथा, राज कथा चोर कथा और भोजन कथा इत्यादिम्प वचनों का [परिहारः] त्याग करना [वा अलीकादिनिवृत्तिवचनं] अथवा असत्य आदिके अभाव रूप बचन बोलना [वाग्गुप्तिः] वचनगुप्ति है । __टीका-यहां पर वचनगुप्ति का स्वरूप कहा है। अतिशय बुद्धिगत हो रही है कामवासना जिनकी मे कामीजनों के द्वारा स्त्रियों के संयोग अथवा वियोग से उत्पन्न हुई अनेक प्रकार की कथाओं की जो रचना है उसको चर्चा करना या सुनना वहीं स्त्रीकथा है । राजाओं की युद्ध हेतुक चर्चा राजकथा का प्रपंच है। चोरों के चौर्य कर्म की कथा-चर्चा चोर कथा है। अतिशय वृद्धिगन भोजन की प्रीति से पूड़ी, शबकर, दही-शक्कर, मिश्री इत्यादि भोजन-पान की प्रशंसा करना भोजन कथा है । इन कथाओं के भी करने का त्याग करना बचन गुप्ति है
SR No.090308
Book TitleNiyamsar
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages573
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size13 MB
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