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________________ अजीव प्रधिकार [ १५ कालादिशुद्धामूर्ताचेतनद्रव्याणां स्वस्वभावगुणपर्यायाख्यानमेतत् । इह हि मुख्यगलतव्ये जीवपुद्गलधर्माधर्माकाशानां पर्यायपरिणतिहेतुस्वात् परिवर्तनलिंगमित्युक्तम् । पब धर्माधर्माकाशकालानां स्वजातीयविजातीयबंधसम्बन्धाभावात् विमावगुणपर्यायाः न मयंति, अपि तु स्वभावगुणपर्याया भवन्तोत्यर्थः । ते गुणपर्यायाः पूर्व प्रतिपादिताः, प्रत एकात्र संक्षेषतः सूचिता इति । ( मालिनी) इति विरचितमुच्चै व्यषट्कस्य भास्वद् विवरणमतिरम्यं भव्यकर्णामृतं यत् । तविह जिनमुनीनां दत्तचित्तप्रमोवं भवतु भवविमुक्त्यै सर्वदा भव्यजन्तोः ॥५०॥ - - - --- . .- -.- ..--- - टोका-काल आदि शुद्ध अ मूर्तिक अचेतन द्रव्यों के निज स्वभाव गुण और पर्यायों का यह कथन है। यहां पर मुख्य काल द्रव्य जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म और आकाश इन पांचों द्रव्यों में पर्यायों के परिणमन का हेतु होने से परिवर्तन लक्षण वाला कहा गया है। ___अब धर्म, अधर्म, आकाश और काल द्रव्यों में स्वजातीय और विजातीय बंध के सम्बन्ध का प्रभाव होने से विभाव गुण पर्याय नहीं होती हैं, अपितु स्वभाब गुण पर्याय होतो हैं, ऐसा अर्थ है । उन गुण और पर्यायों का पहले प्रतिपादन कर दिया है इसलिये यहां पर संक्षेप से सूचित किया है । [ [ अब टोकाकार श्री मुनिराज पट् द्रव्य के जानने के महत्त्व को बतलाते हुए । श्लोक कहते हैं 1 ] (५० ) श्लोकार्थ--इस प्रकार से जो अतिरम्य, भव्य जीवों के कर्णों को । अमृत के समान शोभायमान छह द्रव्यों का विवरण विस्तार से ( मेरे द्वारा ) रचा गया है। वह बिवरण जैन मुनियों के चित्त को प्रमुदित करने वाला है । वह षट् द्रव्य का विवरण सर्वदा भव्य जीव को संसार से मुक्ति के लिए होवे ।
SR No.090308
Book TitleNiyamsar
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages573
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size13 MB
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