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________________ A . - ....... अजीव प्रधिकार । ८५ त्रिलोकशिखरिशेखरस्य अपहस्तितसमस्तक्लेशावासपञ्चविधसंसारस्य पंचमगतिप्राप्तस्य समावगतिक्रियाहेतुः धर्मः। अपि च षट्कापक्रमयुक्तानां संसारिणां विमावतिक्रियाहेतुश्च । यथोदकं पाठीनानां गमन कारणं तथा तेषां जीवपुद्गलानां गमनकारणं स धर्मः । सोऽयममूर्तः अष्टस्पर्शनविनिमुक्तः वर्णरसपंचकगंधद्वितयविनिमुक्तश्च अगुरुकलघुत्वादिगुणाधारः लोकमात्राकारः प्रखण्डकपदार्थः । सहभुवो गुणाः क्रमयतिनः पर्यायाश्चेति वचनादस्य गतिहेतोधर्मद्रव्यस्य शुद्धगुणाः शुद्धपर्याया भवन्ति । अधर्मद्रष्यस्य -- - - - - - - - - - ----- - - - - - - जीवों की होती हैं इन्हें ही छह अपक्रम कहते हैं वे अयोग केवली इन गतियों से रहित है, जो मुक्ति सुन्दरी के लोचन के गोचर हैं-जिन्हें मुक्ति सुन्दरी देख रही है, जो तीन 1. लोक के शियरी के उन ग-पर्वत के शेखर स्वरूप हैं, जिन्होंने सम्पूर्ण कलश के निवास गृह स्वरूप पांच प्रकार - द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव और भाव रूप संसार को समाप्त कर दिया है और जो पंचमगति-मोक्षगति के किनारे पहुंच चुके हैं मे अयोगकेवली भगवान की स्वाभाविक गति में वह धर्म द्रव्य कारण होता है और छह अपक्रम से सहिन संसारी जीवों की विभागतिरूप क्रिया में भी यह हेतु होता है । ___जिस प्रकार मछलियों के गमन का कारण जल है उसी प्रकार उन जीव और पुद्गलों के गमन का कारण यह धर्मद्रव्य है । सो यह द्रव्य अमुत्तिक पाठ स्पर्शों से रहित, पांच वर्ण, पांच रस और दो गन्ध से रहित अगुरुलघु ग्रादि गणों का आधारभुत, लोकमात्र प्राकार वाला, अखण्ड एक पदार्य है। 'सहभावी गुण होते हैं और क्रमवर्ती पर्याय होती हैं। इस कथन से इस गति हेतुक धर्मद्रव्य के शुद्ध गुण और शुद्ध पर्यायें होती हैं । अधर्म द्रव्य का स्थिति में हेतु होना यह विशेष गुण है। इस अधर्म द्रव्य के भी धर्मास्तिकाय के हो सभी गुण और पर्यायें होती हैं । अर्थात् धर्म द्रव्य का गति हेतत्व और अधर्म द्रव्य का स्थिति हेतुत्व दोनों द्रव्यों के ये गुण विशेष हैं जो कि दोनों में अन्तर कर देते हैं बाकी सारे गुण और पर्यायें भी समान ही हैं। अाकाश द्रव्य का अवकाश देना लक्षण ही विशेष गुण है शेष जो धर्म और अधर्म के गुण हैं वे इस आकाश में भी सदृश ही हैं । लोकाकाश धर्म, अधर्म ये समान
SR No.090308
Book TitleNiyamsar
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages573
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size13 MB
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