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________________ प्रजीव अधिकार [ ७६ अण्परिणरावेक्खो जो, परिणामो सो सहावपज्जासो' । खंघसरूवेण पुरणो, परिणामो सो विहावपज्जानो ॥२८॥ अन्यनिरपेक्षो यः परिणामः स स्वभावपर्यायः । स्कंधस्वरूपेण पुनः परिणामः स विभावपर्यायः ॥२८॥ जो प्रन्य से निरपेक्ष है परिणाम प्राण का । वह है स्वभाव नाम से पर्याय अणू का ॥ स्कन्धरूप से पुन: जो परिणमन हुआ । । सो विगाव पों से भेद युत हुआ ॥२८॥ पुद्गलपर्यायस्वरूपाख्यानमेतत् । परमाणुपर्यायः पुद्गलस्य शुद्धपर्यायः परमपारिणामिकभावलक्षणा वस्तुगतषट्प्रकारहानिवृद्धिरूपः अतिसक्ष्मः अर्थपर्यायात्मक मादिनिधनोऽपि परद्रष्यनिरपेक्षत्वाच्छुद्धसदभूतध्यवहारनयात्मकः । अथवा हि -- -- -- -- - - - - गाथा-२८ अन्वयार्थ—-[ अन्यनिरपेक्षः ] अन्य की अपेक्षा से रहित [ यः ] जो । [परिणामः ] परिणाम है [ R: ] वह [ स्वभाव पर्यायः ] स्वभाव पर्याय है पुनः ] और [ स्कंध स्वरूपेण ] स्कंध रूप से [ परिणामा ] जो परिणमन है [ सः ] । वह [ विभावपर्याय: ] विभाव पर्याय है। टोका--यह पुद्गल की पर्याय के स्वरूप का कथन है । परमाण पर्याय पुद्गल द्रव्य को शुद्ध पर्याय है जो कि परम पारिणामिक भाव लक्षण वाली है, वस्तु में होने वालो छह प्रकार की हानि वृद्धि रूप है, अति सूक्ष्म है, अर्थ पर्याय स्वरूप है और सादि-मांत होते हुये भी परद्रव्य से निरपेक्ष होने से शुद्ध सद्भुत व्यबहारनय स्वरूप है । अथवा निश्चित रूप से एक समय में भी उत्पाद व्यय धोव्यात्मक होने से सूक्ष्म ऋजु सूत्र नयात्मक है। स्कन्ध पर्याय स्वजातीय बंध के लक्षण से सहित होने से अशुद्ध है। - - - - -- १. पग्जावो ( क ) पाठान्तर ।
SR No.090308
Book TitleNiyamsar
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages573
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size13 MB
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