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________________ ७२] नियमसार सम्पूर्ण स्कंधों का जो भी अन्त्य अंश है । यो कार्य प्रणु नाम से अति सूक्ष्म अंश है ॥२५॥ कारणकार्यपरमाणुद्रष्यस्वरूपाख्यानमेतत् । पृथिव्यप्तेजोवायवो घातवश्चत्वारः तेषां यो हेतुः स कारणपरमाणः। स एव जघन्यपरमाणुः स्निग्षरूक्षगुरणानामानन्त्याभावात् समविषमबंधयोरयोग्य इत्यर्थः । स्निग्धरूक्षगुणानामनन्तत्वस्योपरि द्वाम्याम -. -- है ऐसा जानना चाहिये [ स्कंधानां अवसानः ] स्कंधों का अक्सान-अंत को [ कार्यपरमाणुः ] कार्यपरमाणु [ ज्ञातयः } जाना चाहिये ।। टीका---यह कारण परमाणु और कार्य परमाणु रूप द्रव्य के स्वरूप का कथन है-- पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु ये चार 'धातु' शब्द से कहे जाते हैं इनका जो हेतु है वह कारण परमाणु है वही जघन्य परमाण स्निग्ध और रूक्ष गुणों के अनन्त का अभाव होने से अर्थात् स्निग्ध-रूक्ष गुणों का अंत हो जाने से-एक स्निग्ध गुण और एक रूक्ष गुण वाला होने से सम और विषम बंध के अयोग्य है यह अर्थ हुना। अर्थात् जिस परमाण में एक ही गुण रहता है वह जघन्य कहलाता है वह बंध के अयोग्य है, '"न जघन्य गुणानां" जघन्य गुणों वाले परमाणुनों का बन्ध नहीं होता है ऐसा वचन है । स्निग्ध और रुक्ष गुणों के अनन्त के ऊपर दो गुण वाले का चार गुण वाले के साथ जो बंध है वह सम्बन्ध है और तीन गुण वाले परमाणु का पांच गुण वाले के साथ जो बंध है वह विषम बंध है यह उत्कृष्ट परमाणु है । गलित होते हुये पुद्गलों का जो अन्त है-अंतिम अवस्था है उसमें जो स्थित है-जो अंतिम अवस्था को प्राप्त हुआ पुद्गल का हिस्मा है वह कार्य परमाणु है। यहां पर कार्य, कारण तथा जघन्य और उत्कृष्ट के भेद से अणु के चार भेद हो गये हैं। वह परमाणु द्रव्य अपने स्वरूप में स्थित है और उसमें विभाव का अभाव होने से वह परमस्वभाव वाला है । १. तत्त्वार्थ सूत्र अ.।
SR No.090308
Book TitleNiyamsar
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages573
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size13 MB
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