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________________ प्रजीमपषिकार Alm 1[RE उक्त च मागंप्रकाशे ( अनुष्टुम् ) "स्थूलस्थूलासानः स्थूलाः स्थलसवमास्तनपारे । सूक्ष्मस्थूलास्ततः सक्षमाः सूक्ष्मसषमास्तार परे ॥" ___ विशेषार्थ-दो अण, तीन अण आदि से लेकर अनन्तानन्त पर्यंत परमाणुगों के मिलने पर सघनरूप बनने को स्कंध कहते हैं । ये स्कंध, भेद और संघात से दोनों तरह से बनते हैं, जैसे घड़े ग्रादि को फोड़ने से भी नो टुकड़े होते है वे स्कंध रूप हो हैं तथा संघात अर्थात् मिलने से तो बनते ही हैं। ऐसे स्कंध के छह भेद माने हैंजिमको अन्य जगह ले जा सकते हैं जिसका छेदन, भेदन हो सकता है वे स्कंध प्रतिस्थल स्थल है में पृथ्वी आदि जिसकी अन्यत्र तो ले जा सकते हैं, किन्तु छेदन भेदन नहीं हो सकता है ऐसे द्रव पदार्थ स्थल कहलाते हैं जैसे-धी, तेल, जल प्रादि । जिनका छेदन-भेदन और अन्यत्र ले जाना आदि कुछ भी नहीं हो सकता है किन्तु अखिों से दिख रहे हैं एसे पूद्गल स्थूल सूक्ष्म हैं जैसे छाया, धूप आदि । जिनको ग्रहण कर सकते परन्तु जिनको देख नहीं सकते हैं ऐसे पुदगल सूक्ष्म स्थूल हैं। वे नेत्र के अतिरिक्त स्पर्शन आदि चार इन्द्रियों के विषय हैं जैसे घ्राण में सुगंध मा रही है, किन्तु दिखाई नहीं देती है । जिनको देख भी नहीं सके और ग्रहण करने का भी अनुभव न हो सके वे मूक्ष्म हैं जैसे कर्म के योग्य पुद्गल-ये प्रतिक्षण प्रात्मा में आ रहे हैं किन्तु इनका कुछ भी अनुभव प्रादि नहीं होता है। मूर्तिक होकर भी जो अत्यंत परोक्ष हों वे प्रति। सूक्ष्म सूक्ष्म हैं जैसे कर्म योग्य पुद्गल से विपरीत सूक्ष्म पुद्गल हैं । __ गोम्मटसार जीवकांड में पुद्गल के अंतिम भेद अतिसूक्ष्म सूक्ष्म के उदाहरण में अन्तर है पुत्री जलं च छाया चरिदिय विसय कम्म परमाणु । छविह भेयं भणियं पोग्गलदव्यं जिणवरेहि ॥६०२।। अर्थ-जिनेन्द्र देव ने पुद्गल द्रव्य के छह भेद कहे हैं-जैसे पृथ्वी, जल, छाया, चार इन्द्रियों के विषय, कर्म और परमाणु ।
SR No.090308
Book TitleNiyamsar
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages573
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size13 MB
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