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जीव मधिकार
। ६३ पारिदेवविरचितायां नियमसारव्याख्यायां तात्पर्यवृत्तौ जीवाधिकारः प्रथमश्रुतस्कन्धः ।।
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को कहा है । उसमें भी सर्व प्रथम जीव द्रव्य का वर्णन करते हुये जीव के उपयोग लक्षण के १२ भेदों का वर्णन है। पुन: जीवद्रव्य की स्वभाव और विभाव पर्यायों का वर्णन है। इसप्रकार द्रव्याधिक और पर्यायाथिक इन दोनों नयों से जीव का वर्णन किया है । अगले द्वितीय अधिकार में अजीव द्रव्यों का वर्णन करेंगे।
इसप्रकार सुकविजन रूपी कमलों के लिये सूर्य समान और पंचेन्द्रिय के प्रसार से रहित ऐसे गात्र-शरीर मात्र परियह के धारी-दिगम्बर मुनिराज श्री पद्मप्रभमलघारीदेव के द्वारा विरचित नियमसार की तात्पर्यवृत्ति
नामक व्याख्या में जीवाधिकार नामका प्रथम श्रुतस्कंध पूर्ण हुमा।