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________________ नियमसार-प्राभृतम् उक्तं च प्रवचनसारग्नन्थे -- "अपदेसं सपनेस मुत्तममुसं च पज्जयमजादं । पलयं गयं च जाणवि तं जाणमणिवियं भणियं ॥४१॥" यज्ज्ञानं कालाणुपरमाण्वादि अप्रवेश, जीवपुद्गलधर्माधर्माकाशद्रव्यादि सप्रदेश, पुद्गलद्रव्यं कर्मबंधनबद्धापेक्षया संसारिजीवसमूहं च मूर्त, शुद्धजीवद्रव्यं पुद्गलजितशेषद्रव्यं चामृर्तमपि जानाति । तथा च अजातमनागतं, प्रलयं गतं चातीतं सर्व त्रिकालगतपर्याय पूर्वोक्तं सर्वमपि ज्ञेयं वस्तु जानाति तज्ज्ञानमतीन्द्रियमिति भणितं जिनशासने । ननु भवद्भिर्मान्यपतीन्द्रियज्ञानं सूक्ष्मादिवर्तमानपदार्थान् जानीयात् परं ये पदार्था विनष्टाः, ये चानुत्पन्नास्ते कथं ज्ञातु शक्यन्ते ? सत्यमुक्तं भवता; परन्तु तेपि तज्ज्ञाने वर्तमानसमाना एवं प्रतिभासन्ते, भित्तिचित्रादिवत् । ___इसी बात को प्रवचनसार में कहा है-- "जो ज्ञान अप्रदेशी, सप्रदेशी, मूर्त, अमूर्त ऐसे सभी पदार्थ को तथा जो पर्यायें अभी नहीं हुई हैं ऐसी अनागत, एवं जो पर्यायें नष्ट हो चुकी हैं ऐसी अतीत सभी पर्यायों को जानता है वह ज्ञान अनिन्द्रिय कहा गया है ।' इसी का विस्तार यह है कि जो ज्ञान कालाणु, परमाणु आदि अप्रदेशी द्रव्यों को, जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश आदि सप्रदेशी द्रव्यों को, मुर्तिकपुद्गल द्रव्य को और कर्मबन्धन से बद्ध हुए की अपेक्षा संसारी जीव-समूह को, अमूर्तिक-शुद्धजीव द्रव्य को और पुद्गल से अतिरिक्त शेष अचेतन द्रव्यों को भी जानता है, उसी प्रकार जो पर्यायें अभी नहीं हुई हैं ऐसी भविष्यत्कालीन और जो नष्ट हो चुकी हैं ऐसी अतीतकालीन पर्यायों को अर्थात् त्रिकालगत सभी पर्यायों सहित संपूर्ण शेयपदार्थों को जानता है, वह ज्ञान जैनशासन में अतीन्द्रिय कहा गया है। शंका--आपके द्वारा मान्य अतीन्द्रिय ज्ञान सूक्ष्म आदि वर्तमान पदार्थों को जान लेने किन्तु जो पदार्थ नष्ट हो चुके हैं और जो अभी उत्पन्न नहीं हुए हैं उनको कैसे जान सकता है ? __ समाधान--आपका कहना सत्य है, किन्तु वे अतीत अनागत पदार्थ भी १. प्रवचनसार । ..--.
SR No.090307
Book TitleNiyamsara Prabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages609
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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