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________________ नियमसार-प्राभूत इत्याविद्वादशगाथाभिः निश्मयप्रत्याख्यानवर्णनम्, “णोकम्मकम्मरहिय" इत्यादिषगाथाभिः परमालोचनास्वरूपकथनम्, “वचसमिदि" इत्यादिननगाथाभिः शुद्धनिश्चयप्रायश्चित्तकथनम्, “वयणोच्चारण' इत्याविद्वादशगाथाभिः परमसमाधिलक्षणनिरूपणम्, “सम्मतणाणचरणे' इत्याविसप्तगाथाभिः परमभक्तिस्वरूपप्ररूपणम्, "जो ण हवदि" इत्याद्यष्टादशगाथाभिः निश्चयपरमावश्यकलक्षणनिरूपणम्, इत्थं द्वयशीतिगाथासूत्रः सप्ताधिकारेषु निश्चयमोक्षमार्गसंज्ञको द्वितीयो महाधिकारः पूर्णोऽभवत् ॥१५॥ इति श्रीभगवत्कुन्दकुन्दाचार्यप्रणोतनियमसारप्राभूतग्रन्थे ज्ञानमत्यायिकाकृतस्याद्वावचन्द्रिकानामटीकायां निश्चयमोक्षमार्गमहाधिकारमध्ये निश्चयपरमावश्यफनामा एकादशोऽधिकारः समासः। हुआ है। पुनः "मोत्तूण सयलजप्पं" इत्यादिरूप से बारह गाथाओं द्वारा निश्चयप्रत्याख्यान का वर्णन हुआ है । इसके बाद गोकम्म कम्मरोहय" इत्यादि B2 गाथाओं द्वारा परम आलोचना के स्वरूप का कथन हुआ है। इसके बाद "वदसमिदि" इत्यादि रूप से नव गाथाओं द्वारा शुद्ध निश्चय प्रायश्चित्त को कहा है। अनंतर "वयणोच्चारण" इत्यादि रूप से बारह गाथाओं द्वारा परमसमाधि का लक्षण बतलाया गया है । तत्पश्चात् "सम्मत्तणाणचरणे' इत्यादि रूप से छह गाथाओं द्वारा परमभक्ति के स्वरूप का प्ररूपण हुआ है। इसके बाद "जो ण हवंदि" इत्यादि रूप से अठारह गाथाओं द्वारा निश्चय परम आवश्यक का लक्षण निरूपित है। इस प्रकार बयासी गाथासूत्रों द्वारा सात अधिकारों में "निश्चय मोक्षमार्ग'नाम का यह दूसरा महाधिकार पूर्ण हुआ है ॥१५८॥ इस प्रकार श्रीभगवान् कुंदकुंदाचार्य प्रणीत नियमसार-प्राभृत ग्रन्थ में ज्ञानमती आयिकाकृत स्याद्वादचन्द्रिका टीका में निश्चयमोक्षमार्ग महाधिकार के अंतर्गत निश्चय परम आवश्यक नाम का यह ग्यारहवाँ अधिकार समाप्त हुआ।
SR No.090307
Book TitleNiyamsara Prabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages609
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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