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________________ नियमसार - प्राभूतम् ૪૪૧ जो कि दि पडिकमणादि झाणमयं करेज्ज - अहो सुने ! यदि त्वया कर्तुं शक्यते तर्हि त्वं प्रतिक्रमणादिक्रियां ध्यानमयीं कुर्याः । उत्तमसंतनचतुर्थकालादिद्रव्यक्षेत्रकालभावसामग्री अनुकूला भवेत् तर्हि निविकल्पसमाधिलक्षणध्याने स्थित्वावश्यक क्रियां पूरयेः । जा सत्तिविहीणो जइ - यावत् शक्तिविहीनस्त्वं यदि भवसि तह त्वया सद्दणं चैव कायव्वं श्रद्धानं चैव कर्तव्यम् । निजशुद्ध परमाह्लादमयपरमात्मतत्त्वस्थ श्रद्धानमेव विधातव्यम् । 7 तद्यथा-- पंचपरमेष्ठिगुणस्मरणचिन्तन पविकल्पाचार तोमं सुतवृ निजपरमात्मतत्त्वे तन्मयो भूत्वा वीतरागनिर्विकल्पदशापरिणतं निश्चयधर्म्यध्यानं शुक्लध्यानं या उत्तम संहननयुक्तमुनेः श्रेण्यारोहणे एव संभवति, तस्मिन् निश्चयसंज्ञक परमार्थध्याने प्रतिक्रमणादिक्रिया निश्चयनघाश्रिता ध्यानमय्यः कथ्यन्ते । एतद्द्वयमपि व्यानमधुना पंचमकाले होन संहननेन नास्ति । हे साधो ! यावत् त्वं शक्तिविहीनोऽसि तावत् शुभोपयोगे एव स्थित्वा निजशुद्धपरमान्दस्वरूपपरमात्मतत्त्वस्य श्रद्धानं विवध्याः । करना शक्य हो, तो तुम्हें प्रतिक्रमण आदि ध्यानमय करना चाहिये । ( जा ज‍ सत्तिविहीणो ) जब तक शक्ति नहीं है, तक तक (सद्दहणं चैव कायच्त्र) श्रद्धान ही करना चाहिये । भाव टीका - अहो मुनिराज ! यदि तुम्हें करना शक्य है तो प्रतिक्रमण आदि क्रियायें ध्यानमयी करो । उत्तम संहनन, चतुर्थकाल आदि द्रव्य, क्षेत्र, काल, की सामग्री यदि अनुकूल होवे तो निर्विकल्प समाधिलक्षण ध्यान में स्थित होकर आवश्यक क्रिया पूर्ण करो। जब तक तुम्हें वैसी शक्ति नहीं है, तो तुम्हें निजशुद्ध परमाह्लादमय परमात्मतत्त्व का श्रद्धान ही करना चाहिये । उसे ही कहते हैं - पंचपरमेष्ठी के गुणस्मरण, चिंतनरूप विकल्प से भी रहित शुद्ध सिद्ध निजपरमात्मतत्त्व में तन्मय होकर वीतराग निर्विकल्प दशा से परिणत निश्चय धर्मध्यान अथवा शुक्लध्यान उत्तमसंहनन से युक्त मुनि की श्रेणी में ही संभव है । उस निश्चय नाम वाले परमार्थध्यान में निश्चयनम के आश्रित प्रतिक्रमण आदि क्रियायें ध्यानमयी कहलाती हैं। ये दोनों ही ध्यान इस समय पंचम काल में हीनसंहनन होने से नहीं हैं । हे साधो ! जब तक तुम शक्ति से हीन हो, तब तक शुभो - पयोग में स्थित होकर निज शुद्ध परमानंदस्वरूप परमात्मतत्व का श्रद्धान करो ।
SR No.090307
Book TitleNiyamsara Prabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages609
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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