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________________ नियमसार-प्राभृतम् निगग्रते। तदनंतरं "णाणा जीवा" इत्यादिगाथाद्वयेन निश्चयावश्यकस्य प्रेरणा कृत्वा "सव्ये पुराणपुरिसा' इत्यायेकेन सूत्रेण के इमां क्रियां विधाय किं च फलं प्राप्नुवन् इति कथ्यते । इत्थं चतुभिरन्तराधिकारैरियं समुदायपातनिका सूचिता मना। कस्य क्रियावश्यकनाम्मा कथ्यते, किंच तस्य कार्यमित्याशंकायामाचार्यदेवा ब्रुवन्तिजो ण वदि अण्णवसो, तस्स दु कम्म भणति आवासं । कम्मविणासणजोगो, णिव्वुदिमग्गो त्ति पिज्जुत्तों ॥१४१॥ जो अण्णवसो ण हदि--पिच्छिकमंडलुमात्रपरिकरसहितो यो महासपोषनोऽन्येषां पचेन्द्रियविषयाणां कषायाणां च वशे न भवति स एवानन्यवशः । तस्स दु कम्मं आवासं भणंति-तस्यमहामुनेस्तु कर्म क्रिया प्रवृत्तिश्च आवश्यकमिति भणन्ति । के ते भणन्ति ? श्रीगौतमप्रभृतिगणधरदेवाः । पुनः इदमावश्यकं किं करोति ? रूप दो गाथाओं द्वारा निश्चय आवश्यक की प्रेरणा देकर “सव्वे पुराणपुरिसा" इत्यादि रूप एक सूत्र के द्वारा कौन इस क्रिया को करके क्या फल प्राप्त किया है ? ऐसा कहेंगे। इस प्रकार चार अन्तराधिकारों द्वारा यह समुदायपातनिका सूचित की गई है। ___किनकी क्रिया आवश्यक नाम से कहलाती है और उसका कार्य क्या है ? ऐसी आशंका होने पर आचार्य देव कहते हैं अन्वयार्थ—(जो अण्णयसो ण हर्वाद) जो अन्य के वश नहीं है, (तस्स दु कम्मं आवासं भणंति) उनकी क्रिया आवश्यक कही जाती है। (कम्मविणासणजोगो) कर्म का विनाश करनेवाला जो योग है, (णिबुदिमग्गो त्ति पिज्जुत्तो) वही निर्वाण का मार्ग है, ऐसा प्रतिपादित किया गया है। जो पिच्छी, कमंडलु मात्र परिकर सहित महातपोधन अन्य पंचेंद्रिय के विषय और कषायों के वश में नहीं होते हैं, वे ही अन्य के वश नहीं हैं। उन महामुनि का कम, क्रिया और प्रवृत्ति आवश्यक इस नाम से कही जाती है। शंका-कौन ऐसा कहते हैं ? समाधान-श्रीगौतमस्वामी आदि गणधर देवों ने ऐसा कहा है। शंका-पुनः ये आवश्यक क्रियायें क्या करती हैं ? १. पज्जुत्तो इति पाठान्तरम् ।
SR No.090307
Book TitleNiyamsara Prabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages609
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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