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________________ नियमसार-प्राभृतम् जीविदमरणे लाभालाभे संजोयविप्पओगे य। बंधुरिसुहदुषखाविसु समदा सामायियं गाम ॥ समदा-समता, चारित्रानुविद्धसमपरिणामः । सामायियं णाम-सामायिक नाम भवति । जीवितमरणलाभालाभसंयोगविप्रयोगबन्ध्वरिसुखदुःखादिषु यदेतत्समत्वं समानपरिणामः त्रिकालदेववंदनाकरणं च तत्सामायिकं व्रतं भवतीत्यर्थः । अस्यां सामायिकक्रियायां त्रिकालदेववन्दनाकरणं यत्कथ्यते, तद्वेववन्दनायां षड्विधं कृतकर्म वर्तते । उक्तं च सिद्धान्तसूत्रमहाशास्त्रे "तस्स आवाहीण-तिखुत्त-पदाहिण-तिओणव-चदुसिर-वारसावत्तादिलक्खणं विहाणं फलं च किदियम्म घण्णेदि।" ___ अस्य कृतिकर्मणः देववंदनाविधेश्च विस्तृतवर्णनमाचारसारचारित्रसारान 'जीवन मरण में, लाभ अलाभ में, संयोग वियोग में, बन्धु और शत्रु में तथैव सुख और दुःख आदि में समताभाव रखना सामायिक है।' यहाँ पर टोकाकार ने समता का अर्थ चारित्र से समन्वित परिणाम कहा है। सामायिक होता है। जीवित-मरण, लाभ-अलाभ, संयोग-वियोग, बन्धुशत्रु और सुख-दुःख आदि में जो यह समत्व-समान परिणाम है और त्रिकाल में देववंदना करना, यह सामायिक व्रत होता है । इस सामायिक क्रिया में जो त्रिकाल में देववंदना करने के लिये कहा है, वह देववन्दना छह प्रकार के कृतिकर्म पूर्वक होती है । सिद्धान्तग्रन्थ कसायपाहुड महाशास्त्र में कहा है-- उसमें आत्माधीनता, तीन प्रदक्षिणा, तीन अवनति, चार नमस्कार और बारह आवर्त आदि रूप लक्षण भेद तथा फल का वर्णन कृतिकर्म प्रकीर्णक करता है।' इस कृतिकर्म और देववन्दना विधि का विस्तृत वर्णन आचारसार, १. मूलाचार गाथा २३ और टीका का अंश । २. जयववला, प्रथम पुस्तक, पृ० ११८।। ३. आचारसार, अध्याय ९, श्लोक २० से ४३ ।
SR No.090307
Book TitleNiyamsara Prabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages609
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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