________________
नियमसार-प्राभृतम् जातन्यानि, व्याख्यानं वृत्तिग्रन्थो व्याख्येयं तत्प्रतिपादकसूत्रमिति तयोः सम्बन्धो व्याख्यानव्याख्येयसंबन्ध । सूत्रमभिधानं सूत्रार्थोऽभिधेयस्तयोः संबन्धोऽभिधानाभिधेयसंबन्धः । व्यवहारनिश्चयरत्नत्रयावलम्बनेन शुद्धात्मपरिज्ञानं प्राप्तिर्वा प्रयोजनमित्यभिप्रायः ॥१॥
आत्मने हितं तत्प्राप्त्युपायश्च इत्थं वैविध्यं प्रतिपादयन्ति भगवन्तः-- मग्गो मग्गफलं ति य दुविहं जिणसासणे समक्खादं । मग्गो मोक्खउवायो तस्स फलं होइ णिव्वाणं ॥२॥
मग्गो मग्गफलं लगा विहं गार्ग. मार्गमा इसि च द्विविधम् । क्च कथितमेतत् ? जिण सासणे समक्खादं-जिनशासने समाख्यातम् । को मार्गः किं च तत्फलं ? मग्गो मोक्ख उवायो तस्स फलं णिव्वाणं होइ-मार्गः मोक्षोपायः, तस्य फलं निर्वाणं भवति इति क्रियाकारकसम्बन्धः ।।
___इतो विस्तर:--माय॑ते अन्विष्यते येन स्वेष्टस्थानं वस्तु वा स मार्गः, मोक्षस्य प्राप्त्युपायः । तेन मार्गेण गत्वा उपायं कृत्वा यल्लभ्यते तदेव फलम् तत्त सूत्रों का अर्थ अभिधेय है। इन दोनों का संबंध अभिधान-अभिधेय संबंध है । व्यवहार-निश्चय रत्नत्रय के अवलंबन से शुद्ध आत्मा का ज्ञान होना या शुद्ध आत्मा की प्राप्ति हो जाना ही इस ग्रन्थ का प्रयोजन है । यह अभिप्राय हुआ।
अब यहाँ भगवान् कुदकुंददेव आत्मा का हित और उसकी प्राप्ति का उपाय इन दो प्रकार को बतलाते हैं
अन्वयार्थ-(जिणसासणे) जिन शासन में (मग्गो य मग्गफलं ति) मार्ग और मार्ग का फल ये दो प्रकार (समक्खादं) कहे गये हैं। (मोक्ख उवायो मग्गो) मोक्ष की प्राप्ति का उपाय मार्ग है और (तस्स फलं णिव्वाणं होइ) उसका फल निर्वाण है।
स्याद्वादचन्द्रिका टीका-मार्ग और मार्ग का फल ये प्रकार हैं । यह कहाँ कहा है ? जिन शासन में कहा है । मार्ग क्या है और उसका फल क्या है ? मोक्ष का उपाय मार्ग है और उसका फल निर्वाण है । यह क्रियाकारक संबंध हुआ।
अब आगे विस्तार करते हैं जिसके द्वारा अपना इष्ट स्थान अथवा इष्ट वस्तु खोजी जाती है वह मार्ग है । अर्थात् मोक्ष की प्राप्ति का उपाय । यहाँ मृग धातु ढूंढने अर्थ में है, उससे ही मार्ग शब्द बना है । इस मार्ग से चलकर अर्थात्