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नियमसार-प्राभृतम् ईत सकलपदार्थसमूहं प्रत्यक्षीकरोतीति वीरः। यदा बोरयते शूरयते विक्रामति कर्मारातीन् विजयते इति वीरः श्रीवर्धमानः सन्मतिगारोऽशिवो गहमिनहावीर इति पञ्चाभिधानः प्रसिद्धः सिद्धार्थस्यात्मजः पश्चिमतीर्थकर इत्यर्थः । अथवा 'कटपयपुरस्थवर्णनव नव पञ्चाष्टकल्पितः क्रमशः । स्वरजनशून्यं संख्यामानोपरिमाक्षरं त्याज्यम् ॥ इति सूत्रनियमेन बकारेण चतुरङ्को र शब्देन च द्वचस्तथा 'अस्तानाबामतो गतिः' इति न्यायेन चतुविशत्यङ्कन (२४) वृषभादिमहावीरपर्यन्तचतुर्विंशतितीर्थकराणामपि ग्रहणं भवति ।।
अनन्तभवप्रापणहेतून् समस्तमोहरागद्वेषादीन् जयतीति जिनः । उक्तं च श्रीपूज्यपाददेवैः
जितमदहर्षद्वेषा जितमोहपरीषहा जितकषायाः ।
जितजन्ममरणरोगा जितमात्सर्या जयन्तु जिनाः ॥ अर्थात् कर्म शत्रुओं पर विजय प्राप्त करते हैं, वे वीर हैं । ये बीर भगवान्, श्रीवर्धमान, सन्मति, अतिवीर और महतिमहावीर इन पाँच नामों से प्रसिद्ध श्रीसिद्धार्थ महाराज के पुत्र अंतिम तीर्थकर हैं।
८ अथवा वीर शब्द का चौथा अर्थ करते हैं—'कटपय' इत्यादि श्लोक का अर्थ है । क से झ तक अक्षरों में से क्रम से १ आदि से ९ तक अंक लेना । ट से ध तक भी क्रम से १ से ९ तक अंक लेना । पवर्ग से क्रमशः ५ तक अंक लेना और 'य र ल व श ष स ह इन आठ से क्रमशः ८ तक अंक लेना । इनमें जो स्वर आ जावें या अ और न आवें तो उनसे शून्य (0) लेना । इस सूत्र के नियम से 'वीर' शब्द के वकार से ४ का अंक और रकार से २ का अंक लेना। तथा 'अङ्गानां वामतो गतिः' इस सूत्र के अनुसार अङ्कों को उल्टे से लिखना होता है । इसलिये '२४' अङ्क आ गया। वीर शब्द के इस २४ अङ्क से आदिनाथ से लेकर महावीर पर्यन्त चौबीस तीर्थंकरों का भी ग्रहण हो जाता है। जिससे चौबीसों तीर्थंकरों को भी नमस्कार किया गया है, यह समझना ।।
अनंतभवों को प्राप्त कराने में कारण ऐसे संपूर्ण मोह, राग, द्वेष आदि को जीतते हैं, वे 'जिन' कहलाते हैं 1
श्री पूज्यपादस्वामी ने कहा है
जिन्होंने मद, हर्ष और द्वेष को जीत लिया है, मोह और परीषहों को जीत लिया है, कषायों को जीत लिया है, मात्सर्य को जीत लिया है और जन्ममरण रोगों को जीत लिया है, वे 'जिन' कहलाते हैं। ऐसे जिनदेव सदा जयशील होयें ।