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________________ नियमसार-प्राभूतम् अथ व्यवहारप्रायश्चितसाध्यनिश्चयप्रायश्चित्तनामधेयोऽष्टमोऽधिकारः प्रारभ्यते । तत्र नवगाथासूत्रेधु तावत् "वयसमिदि-इत्यादिना गाथाद्वयेन व्यवहारनिश्चयप्रायश्चित्तलक्षणम्, तदनु 'कोहं खमया' इत्यादिगाथासूत्रेणकेन निश्चयशुद्धप्रायश्चित्तस्य प्रारम्भिकोपायः प्रदश्यते । तत्पश्चात् 'उक्किट्ठो जो बोहो'इत्यादिना तिसृभिः गाथाभिः भेदविज्ञानं श्रेष्ठतपश्चरणं चैव निश्चयप्रायश्चित्तमिति निगद्यते । तदनन्तरं 'अप्पसरूघालवणं' इत्याविना ध्यानमेव शुद्धप्रायश्चित्तं वर्तते इति द्वाभ्यां सूत्राभ्यां प्रतिपाद्य पुनः 'कायाई परदव्वें'–इत्येकेन सूत्रेण कायोत्सर्गलक्षणं प्रकृतोपसंहारश्चेति त्रिभिरन्तराधिकारैः समुदायपातनिका सूचिता भवति । प्रथमतस्तावत सामान्यतया प्रायश्चित्तस्य लक्षणं ब्रुवंति श्रीकुन्दकुन्ददेवा -- वदसामदिसीलसंजमपरिणामो करणणिग्गहो भावो । सो हवदि पायछित्तं अणवरयं चेव कायव्वो ॥११३॥ मात्र करने वाला गृहस्थ सदोष है । तथा तीर्थ र महापुरुष सदा निर्दोष ही हैं, उनके अपने पदानुकूल व्रत में कभी दोष-अलीचार नहीं लगता है। . अब प्रायश्चित्त से साध्य निश्चय प्रायश्चित्त नामवाला यह आठवाँ अधिकार प्रारंभ किया जाता है। उसमें नव मापासूत्र हैं, उनमें से सर्व प्रथम "बदसमिदि" इत्यादिरूप दो गाथाओं द्वारा 'व्यवहार निश्चय प्रायश्चित्त' का लक्षण कहेंगे। इसके बाद 'कोहं खमया" इत्यादिरूप एक गाथासूत्र द्वारा निश्चय शुद्ध प्रायश्चित्त का प्रारंभिक उपाय दिखायेंगे। इसके बाद "उक्किट्ठो जो बोहो" इत्यादिरूप तीन माथाओं द्वारा भेद विज्ञान, श्रेष्ठ तपश्चरण ही निश्चय प्रायश्चित्त है, ऐसा कहा जायेगा। इसके अनंतर "अप्पसरूवालंबण' इत्यादिरूप से ध्यान ही शुद्ध प्रायश्चित्त है, ऐसा दो गाथाओं द्वारा प्रतिपादन करके पुनः “कायाई परदव्वे" इत्यादिरूप एक सूत्र द्वारा कायोत्सर्ग का लक्षण और प्रकृत का उपसंहार करेंगे । इस प्रकार तीन अंतराधिकारों से समुदायपातनिका सूचित की गई है। अब सर्वप्रथम श्री कुन्दकुन्ददेव सामान्यरूप से प्रायश्चित्त का लक्षण कहते हैं-- __अन्वयार्थ--(बदसमिदिसीलसंजमपरिणामो) व्रत, समिति, शील, संयम और (करणणिग्गही भावो) इंद्रिय निग्रह का भाव (सो पायछित्तं हवदि) यह प्रायश्चित्त है । (अणबरयं चेव कायब्वो) इसे सतत करना चाहिये ।
SR No.090307
Book TitleNiyamsara Prabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages609
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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