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________________ नियमसार-प्राभृतम् ग्रन्थान्तरे सप्तबृहत्सप्तलघुभेवेन चतुर्दश प्रतिक्रमणाः कथ्यन्ते, ते सर्वे भेदा अत्रैवान्तर्भवन्ति । तथाहिबहत्प्रतिक्रमणाः सप्त-- व्रतादाने च पक्षान्ते कातिके फाल्गुने शुधौ। स्यात्प्रतिक्रमणा गुर्वी दोषे संन्यासने मृतौ ॥ प्रतारोपणी, पाशिको, कार्तिकान्तचातुर्मासी, फाल्गुनान्तचातुर्मासी, आषाढान्तसांवत्सरी, सार्यातीचारी, उत्तमार्थी चेति । सर्यातीचारदीक्षादानप्रतिक्रमणे गुरुत्वादुत्तमार्थप्रतिक्रमणे अन्तर्भवतः। कार्तिकान्तफाल्गुनान्सय चातुर्मासिफातिप्रभशापा संलोयते । लघुप्रतिक्रमणाः सप्त-- लुञ्चे रात्री दिने भुक्तेनिषेधिकागमने पथि। स्यात्प्रतिकमणा लध्दी तथा दोषे तु सप्तमी' । बृहत् प्रतिक्रमण और सात लघु प्रतिक्रमण के भेद से प्रतिक्रमण चौदह प्रकार के माने गये हैं। वे सभी भेद इन्हीं उपर्युक्त सात में ही अंतर्भूत हो जाते हैं। सो दिखाते हैं-- बृहत्प्रतिक्रमण सात है--व्रतादान में, पक्ष के अन्त में, कातिक में, फाल्गुन में, आषाढ़ में, दोष लगने पर और संन्यास-मरण में बड़ा (बृहत) प्रतिक्रमण होता है । अर्थात् व्रतारोपण, पाक्षिक, कार्तिक के अन्त में चातुर्मासिक, फाल्गुन के अन्त में चातुर्मासिक, आषाढ़ के अन्त में वार्षिक, सार्वातिचार और उत्तमार्थ--ये सात बड़े प्रतिक्रमण हैं। इनमें से सार्यातिचार और व्रतारोपण ये दो प्रतिक्रमण बड़े होने से 'उत्तमार्थ' में गर्भित हो जाते हैं। कार्तिकांत चातुर्मासिक और फाल्गुनांत चातुर्मासिक ये दो चातुर्मासिक में अंतर्भत हो जाते हैं। पूनः बड़े प्रतिक्रमण में पाक्षिक, चातुमासिक, वार्षिक और उत्तमार्थ ये चार ही रह जाते हैं। ऐसे ही लघु प्रतिक्रमण भो सात हैं । लोच करने पर, रात्रि के बाद, दिन के बाद, आहार के अनंतर, निषिद्धिकावंदना के अनंतर, मार्ग चलने पर और अतीचार लगने पर ये किये जाते हैं । स्पष्टीकरण इस प्रकार है-- १. अनगारधर्मामृत, अध्याय ८ । २. अनगारपर्मामृत, अध्याय ८ । ३. अनगारधर्मामुत, अध्याय ८।
SR No.090307
Book TitleNiyamsara Prabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages609
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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