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टीका कर्त्री आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी
न्याय प्रभाकर, सिद्धांत वाचस्पति, आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी जैन समाज में एक सुप्रसिद्ध लेखिका, चितक एवं विदुषी हैं। आपका सम्पूर्ण जीवन साहित्य के पठन-पाठन व मननचिन्तन में व्यतीत हुआ है। आपका जन्म टिकैतनगर, जिला बाराबंकी, उ०प्र० में वि० सं० १९९१, सन् १९३४, २२ अक्टूबर शरद पूर्णिमा को हुआ। पिता का नाम श्री छोटेलाल जैन एवं माता का नाम श्रीमती मोहिनी देवी, जो कि आर्यिका रत्नमती जी के नाम से प्रसिद्ध हुई हैं । १५ जनवरी, १९८५ को उनका सल्लेखना पूर्वक समाधि मरण हुआ । इनकी प्रथम कन्या मेना ने १८ वर्ष की अल्प आयु में सन् १९५३ में ब्रह्मचर्य व्रत धारण कर आचार्य श्री देशभूषण जी से क्षुल्लिका दीक्षा ग्रहण की थी । ३ वर्ष पश्चात् आपने चारित्र चक्रवर्ती श्री शांतिसागर जी महाराज के पट्टाधीश आचार्य श्री वीरसागर जी महाराज से वैशाख कृष्ण २ वि० सं० २०१३ सन् १९५६ में आर्यिका
ग्रहण कर ली।
पू० आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी को आशीर्वादात्मक प्रेरणा तथा तपस्या का प्रतिफल है जिनके निर्देशन में सन् १९७४ से हस्तिनापुर में जम्बूद्वीप रचना का निर्माण हो रहा है । यह रचना हिन्दुस्तान में अभी तक नहीं बनी, प्रथम बार हस्तिनापुर में यह कार्य हुआ है। यहाँ का कार्य दि० जैन त्रिलोक शोध संस्थान की देखरेख में हो रहा है। इस त्रिलोक शोध संस्थान के अन्तर्गत "वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला" द्वारा पू० ज्ञानमतीजी विरचित साहित्य प्रकाशित होता है । ८० ग्रन्थों का प्रकाशन हो चुका है । पू० माताजी ने १२० ग्रन्थों की रचना की है जो कि समय-समय पर पाठकों के हाथों में आ रहे हैं । 'सम्यग्ज्ञान' मासिक पत्रिका पू० माताजी के सुनियोजित लेखों से प्रकाशित होकर प्रतिमाह धर्मजिज्ञासु बन्धुओं को प्राप्त होती है । सन् १९७९ में जम्बूद्वीप रचना स्थल पर 'आ० वीरसागर संस्कृत विद्यापीठ' की स्थापना की गई है, जिसमें छात्र विशारद, शास्त्री, आचार्य आदि उपाधि परीक्षाओं का कोर्स पढ़कर समाज के समक्ष प्राचीन परम्परा के नवीन विद्वान् के रूप में आ रहे हैं । संस्थान की ये चहुँमुखी जीवन्त कृतियाँ हैं, जिनके द्वारा प्राचीन हस्तिनापुर पुनः उभर कर नूतन रूप में लहरा रहा है। जो क्षेत्र आज से १० वर्ष पूर्व केवल आसपास के कतिपय ग्रामों में सीमित था, वह आज जम्बूद्वीप रचना के निमित्त से देश का ही नहीं अपितु विश्व की दृष्टि का केन्द्र बन गया है। देश और विदेश के सैकड़ों यात्री प्रतिदिन श्रद्धा एवं खोज की दृष्टि से आते हैं।
जम्बूद्वीप ज्ञानज्योति प्रवर्तन एक अनुपम कार्य -४ जून १९८२ को लाल किला मैदान दिल्ली से पू० आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी के शुभाशीर्वाद एवं भारतरत्न स्व० प्रधानमन्त्री श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा प्रवर्तित जम्बूद्वीप ज्ञानज्योति के सम्पूर्ण भारत भ्रमण के द्वारा अहिंसा तथा राष्ट्रव्यापी एकता का व्यापक प्रचार हुआ है । १०४५ दिनों में लगभग एक लाख किलोमीटर के दौरे के पश्चात् २८ अप्रैल १९८५ को हस्तिनापुर में उनका मंगल आगमन होगा एवं ज्ञानज्योति की अखण्ड स्थापना होगी जिससे युग-युग तक जनमानस को ज्ञान का प्रकाश प्राप्त होता रहेगा ।
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