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________________ १९२ नियमसार-प्राभृतम् पासुगभूमिपदेसे - प्रासुकभूमिप्रवेशे हरितकायत्रसकाय जीवाविरहिते निर्जन्तुकस्थाने, छिद्रबिलादिरहिते च । पुनः कथंभूते ? गूढे - संवृते जनानामचक्षुविषये । पुनः किविशिष्टे ? परोपरोहेण रहिए - परोपरोधेन रहिते, परेषां विरोधरहिते । उच्चारादिच्चागो - उच्चाराविश्यागः, मलमूत्रादिविसर्जनं करोति तस्स पइट्टासमिदो हवे - तस्य मुनेः प्रतिष्ठासमितिः भवेत् । तथाहि - निर्जने निषेधरहिते निर्जन्सुके भूमिप्रवेशे यः साधुनेत्राभ्यामवलोक्य पिच्छिकथा संशोध्य व स्वशरीरस्य पुरीषमूत्रश्लेष्म सिंघाण कछर्धाविविकृति त्यजति स पञ्चमसमित्यावारको भवति । प्रयत्नपूर्वमस्याः समित्या पालनेन दीप्ततसादय ऋद्धयः संजायन्ते यन्निमितेन आहारं गृहीत्वापि मलमूत्राविकं न जायते । पुनः आहारमपि त्यक्त्वा निजात्मजन्यज्ञानामृतं स्वदमानः शरीरादपि 2 टीका - हरितकाय, सकाय जोवों से रहित निर्जंतुक स्थान और छिद्र बिल से रहित स्थान प्रासुक है । गूढ़ अर्थात् मर्यादित जो लोगों की चक्षु का विषय नहीं है, तथा जो दूसरों के विरोध से रहित है, ऐसे स्थान में जो साधु मल मूत्र, थूक, कफ आदि शरीर के मल का विसर्जन करते हैं, उनके यह प्रतिष्ठापना समिति होती है । उसी को और भी खुलासा करते हैं जो साधु निर्जन, निषेधरहित, जंतुरहित, स्थान में पहले अपने नेत्रों से देख कर पुनः पिच्छिका से संशोधित करके अपने शरीर के मल, मूत्र, कफ, नाक मल, वमन आदि विकृति को छोड़ते हैं, वे पांचवीं समिति के धारक होते हैं । प्रयत्न 1 पूर्वक इस समिति के पालन करने से दीप्त ऋद्धि, तप्त ऋद्धि आदि अनेक ऋद्धियां उत्पन्न हो जाती हैं, जिनके निमित्त से आहार को ग्रहण करके भी उनके मलमूत्रादि नहीं होता है । पुनः वे महामुनि आहार को भी छोड़कर अपनी आत्मा से उत्पन्न ज्ञानरूपी अमृत का आस्वादन करते हुए शरीर से भी पृथक् अशरीरी होने योग्य हो जाते हैं । ऐसा जानकर मुनि और आर्थिकाओं को प्रीतिपूर्वक इन समितियों का पालन करते रहना चाहिए । भावार्थ - इस समिति के प्रभाव से ऐसी ऋद्धियाँ प्रगट हो जाती हैं कि P जिससे पुन: मल मूत्र आदि ही न उत्पन्न हो सके, पुनः वे महामुनि विशेष तपश्चर्या
SR No.090307
Book TitleNiyamsara Prabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages609
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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