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________________ -२० कुन्दकुन्द, बक्रग्रीब एलाचार्य गद्धपिच्छ और पद्मनंदि । मोक्ष पाहड़ की टोका की समाप्ति में भी ये पाँच नाम दिये गये है, तथा देवसेनाचार्य, जयसेनाचार्य आदि ने भी इन्हें पद्मनन्दी नाम से कहा है। इनके नामों की सार्थकता के विषय में पं० जिनदास फडकुले ने मूलाचार की प्रस्तावना में कहा है-इनका कुन्दकुन्द यह नाम कौण्डकुण्ड नगर में रह वासी होने से प्रसिद्ध है । इनका दीक्षा नाम पद्मनन्दो है। विदेह क्षेत्र में मनुष्यों की ऊँचाई ५०० धनुष और इनकी वहाँ पर साढे तीन हाथ होने से इन्हें समवसरण में चक्रवर्ती ने अपनी हथेली में रखकर पूछा प्रभो-नराकृति का यह प्राणो कौन है ? भगवान ने कहा-भरतक्षेत्र के यह चारण ऋद्विधारक महातपस्वो पद्यनन्दी नामक मुनि है इत्यादि। इसलिए उन्होंने उनका एलाचार्य नाम रख दिया । विदेह क्षेत्र से लौटते समय इनकी पिच्छी गिर जाने से गृद्धपिच्छ लेना पड़ा, अतः "गृद्धपिच्छ” कहाये । और अकाल में स्वाध्याय करने से इनकी नीवा टेढ़ी हो गई तब ये "बक्रनीव" कहलाये । पुनः सुकाल में स्वाध्याय से ग्रीवा ठीक हो गई थी।" इत्यादि। २. श्वेताम्बरों के साथ वाद-गुर्वावली में स्पष्ट है"पद्मनंदि गुरूर्जातो बलात्कारगणाग्रणीः, पाषाणर्चाटता येन वादिता श्रीसरस्वती । उर्जयंतगिरौ तेन गच्छः सारस्वतोऽभवत् । असस्तस्मै मुनीन्द्राय नमः धीपष्पनदिने ।" बलात्कार गणाग्नणी श्री पद्मनंदी गुरु हुए। जिन्होंने ऊर्जयंत गिरि पर पाषाणनिर्मित सरस्वती की मूर्ति को बुलवा दिया था। उससे सारस्वत गच्छ हुआ, अतः उन पद्मनंदी मुनीन्द्र को नमस्कार हो । पांडवपुराण में भी कहा है "कुन्दकुन्दगणी येनोजयंतगिरिमस्तके, सोऽवदात् वादिता ब्राह्मी पाषाणघटिका कलौ ।। जिन्होंने कविकाल में ऊर्जयंत गिरि के मस्तक पर पाषाणनिर्मित ब्राह्मी की मूर्ति को बुलवा दिया । कवि वृन्दावन ने भी कहा है-- संघ सहित श्री कुन्दकुन्द, ___ गुरु वंदन हेतु गये गिरनार । बाद पर्यो तहे संशयमति सों, साक्षी बदी अंबिकाकार । "सत्यपंथनिग्रंथ दिगम्बर", कही सुरी तह प्रगट पुकार। सो गुरुदेव बसो उर मेरे, विघन हरण मंगल करतार । अर्थात् श्वेताम्बर संघ ने वहाँ पर पहले वंदना करने का हठ किया तब निर्णय यह हुआ कि जो प्राचीन सत्यपंथ के हों वे ही पहले बंदना करें। तब श्री कुन्दकुन्ददेव ने ब्राह्मी की मूर्ति से कहलवा दिया कि सत्यपंथनिर्ग्रन्थ दिगम्बर ऐसी प्रसिद्धि है।
SR No.090307
Book TitleNiyamsara Prabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages609
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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