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नियमसार-प्राभूतम् अरसमरूवमगंध-अससं पत्रविधरसरहितम्, अरूपं पंचविधरूपरहितम्, अगंधं द्विविधगंधरहितम् । पुनः कथंभूतम् ? अव्वत्तं-अव्यक्तम्, अप्रकटस्वरूपम् । पुनरपि कर्थभूतं ? चेदणागुणं-चेतनागुण ज्ञानवर्शनोपयोगलक्षणलक्षितम्। पुनश्च किविशिष्टम् ? असद-अशब्दम्, अक्षरानक्षरशब्दरहितम् । पुनश्च किरूपम् ? अलिंगग्गहणं-अलिंगग्रहणं लिंगेन अनुमानेनं इन्द्रियैर्वा ग्रहीतुम् अशक्यम् । पुनश्च कोदृशम् ? अणिद्दिट्ठसंठाणं-अनिर्विष्टसंस्थानम्, अस्थ आकारो निर्देष्टुं न शक्य इति ।
___ निश्चयनयेन रूपरसगंधस्पर्शरहितं मनोगतकामक्रोधादिविकल्पविषयरहितत्वेन अव्यक्तं सूक्ष्मं शब्दपर्यायशन्यं अशब्दम् । लिंगेन स्वपरजीवानामिन्द्रियण ग्रहीतं अशक्यत्वात् अनुमानेन चिह्नन वा अगम्यमानत्वात् अलिंगग्रहणं समचतुरस्राविनानाविधसंस्थानरहितत्वेन अनिर्विष्टसंस्थानम् । पुनः किविशिष्टम् ? अन्यद्रव्यासाधारणं स्वकीयानन्तजीवजातिसाधारणश्च चैतन्यगुणविशिष्ट जीवद्रव्यं त्वं हे शिष्य ! जानीहि । ननु जीवः सिमतावपि पुरुधाकारण सिप्स, पुनः संस्थान
से रहित, पाँच प्रकार के रूप से रहित, दो प्रकार के गंध से रहित और अप्रकटस्वरूप जानो । पुन: यह जीव ज्ञानदर्शन उपयोग से लक्षित चेतना गुण से सहित है, अक्षर-अनक्षर शब्द से रहित है, लिंग-अनुमान अथवा इन्द्रियों से ग्रहण नहीं किया जा सकता है और इसका आकार भी नहीं बताया जा सकता है। निश्चयनय से यह जीव रूप रस गंध और स्पर्श से रहित, मनोगत काम क्रोध आदि विकल्पों का विषय न होने से अव्यक्त अर्थात् सूक्ष्म और शब्दपर्याय से शून्य अपशब्द है । लिंगअपनी और पर को इंद्रियों से ग्रहण करना शक्य न होने से, अनुमान अथवा अन्य किसी भी चिह्न से जानने योग्य न होने से अलिंगग्रहण है। समचतुरस्र आदि अनेक प्रकार के संस्थान से रहित होने से अनिर्दिष्ट संस्थान है और अन्य द्रव्यों में नहीं पाये जाने वाले ऐसे असाधारण तथा अपनी अनंतजीव राशि से साधारण ऐसे चैतन्यगुण से विशिष्ट यह जीव द्रव्य है। हे शिष्य ! ऐसा तुम समझो।
शंका-जीव सिद्ध गति में भी पुरुषाकार से रहता है, पुनः संस्थानरहित कैसे है ?
समाधान आपका कहना ठीक है, यद्यपि संसार अवस्था में छोटा या बड़ा जैसा शरीर मिलता है, उसी देहप्रमाण रहता है, तब वह शरीर ही उसका आकार रहता है। पुनः इस जीव का सिद्धावस्था में चरम शरीर से किंचिल्यून पुरुषाकार