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________________ नियमसार-प्राभृतम् १३९ म्ताप्रशस्तरागान निर्गतः नीरागः । मिथ्यात्ववेनरागद्वेषाविदोषात क्षत्तष्णाघष्टावश. दोषः निर्गतः निर्वोषः । मिथ्यात्वाविजनितमूढत्वात निर्गतः निर्मूढः । इहलोकपरलोकादिसप्तभयात निष्क्रान्तः निर्भयश्च । अथथा दण्डद्वन्द्वममत्वकलावलम्बनरागदोषमूढत्वभयाश्च इमे दोषाः यस्मात् निर्गतः सः तादृशों निर्दण्डाविस्वरूपे आत्मा एव शुद्धात्मा कथ्यते । अस्मिन संसारे कर्मबन्धनबद्धो शद्धोऽप्ययमात्मा शुद्धनयेन तादशो 'निर्भण्ड'इत्यादिविशेषणविशिष्ट एव । अत ईदृशं जीवस्य स्वरूपं ज्ञात्वा परनिमित्तोक्येन जनितान् वण्डद्वन्द्वादिविकारान् हित्वा सरागचारित्रबलेन शक्तिसंचयं कुर्वता सता पश्चान्निविकल्पसमाधौ स्थित्वा स्वस्यात्मापि शद्धः कर्तव्यः॥४३॥ मोहोदय से उत्पन्न हुये समस्त शुभ-अशुभ राग से रहित होने से नीराग है । मिथ्यात्व, बे, राग, देवदि दोनों रो समयः अर, मा आदि अठारह दोषों से रहित होने से निर्दोष है । मिथ्यात्व आदि से होने वाली मूढ़ता से रहित होने से निर्मूढ़ है । इसलोक, परलोक आदि सात प्रकार के भयों से रहित होने से निर्भय है । अथवा दण्ड, द्वन्द्व, ममत्व, शरीर, अबलंबन, राग, द्वेष, मूढ़ता और भय ये दोष जिससे निकल गये हैं, वह वैसा निर्दण्ड आदि स्वरूप वाला आत्मा ही शुद्ध आत्मा कहलाता है । इस संसार में कर्मबंधन से बँधा हुआ अशुद्ध भी यह आत्मा शुद्धनय से वैसा निर्दण्ड इत्यादि विशेषणों से विशिष्ट ही है । इसलिये ऐसे जोव के स्वरूप को जानकर परमनिमित्तोदय से हुये दण्ड, द्वन्द्व आदि विकारों को छोड़कर सरागचारित्र के बल से शक्ति संचय करते हुये अनंतर निर्विकल्प समाधि में स्थित होकर तुम्हें अपनी आत्मा भी शुद्ध करनी चाहिये । भावार्थ-यहाँ पर प्रत्येक पद में निर् उपसर्ग है। व्याकरण से इसका अर्थ ऐसा होता है कि जिनसे ये दण्ड, द्वन्द्व आदि निकल चुके हैं, वह आत्मा निर्दण्ड निर्दव आदि हैं । किन्तु यहाँ पर शुद्धनय से ये दण्ड आदि आत्मा में हैं ही नहीं, यह अर्थ विवक्षित है । अतः ऐसा अर्थ समझना चाहिये कि जिन प्रकट सिद्ध परमात्मा से ये दण्ड आदि निकल चुके हैं, उनके सदृश ही हमारी आत्मा निर्दण्ड आदि है अथवा वह इन दोषों से रहित है, चूंकि व्याकरण का व्युत्पत्ति अर्थ सर्वत्र लागू नहीं होता ॥४३॥
SR No.090307
Book TitleNiyamsara Prabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages609
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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