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________________ १३८ नियमसार-प्राभृतम् यदी विकारा जीवस्य न संति, तहि कीदृशोऽयम् ? इत्याशंकायामाहराचार्या :-~ णिदंडो णिदंदो णिम्ममो णिक्कलो णिरालंबो । णीरागो गिदोसो जिम्मूढो णिलभयो अप्पा ॥४३॥ अप्पा-अयमात्मा । णिइंडो णिइंदो णिम्ममो णिक्कलो णिरालंबो गोरागो णिद्दोसो णिम्मूढो णिन्मयो-निर्दण्डः, निद्वन्द्वः, निर्ममः, निष्कलः, निरालम्बः, नीरागः, निर्दोषः, निर्मूढः, निर्भयः इति । अयमात्मा मनोवचनकायानामशुभप्रवृत्तिरूपवण्डात् निष्क्रांत: निर्दण्डः । परमतत्वव्यतिरिक्तसमस्तपरतथ्यसम्बन्धात् निष्क्नांत: निईन्द्रः । मोहोदयजनितममकारात् निष्क्रान्तो निर्ममः । औदारिकादिपञ्चविधशरीरात् कलायाः निष्क्रान्तः मिष्कलः । पुद्गलाविपरद्रव्यावलम्बनात निर्गतः निरालम्बः। मोहोदयजनितप्रश से ढकी हुयी अपनी आत्मा को शुद्ध करने के लिये प्रमाद छोड़कर सतत पुरुषार्थ करना चाहिये ॥४२॥ यदि ये विकारभाव जीव में नहीं हैं तो यह कैसा है ? ऐसी आशंका होने पर आचार्य कहते हैं __अन्वयार्थ-(अप्पा णिददो णिदंडो णिम्ममो णिक्कलो णिरालंबो) यह आत्मा दण्डरहित, द्वंद्वरहित, ममतारहित, शरीररहित, अवलंबनरहित है। (णीरागो णिहोसो णिम्मूढो णिभयो) रागरहित, दोषरहित, मूर्खतारहित और भयरहित है ।।४३॥ टीका-यह आत्मा निर्दण्ड, निर्द्वन्द्व, निर्मम, निष्कल, निरालम्ब, नीराग, निर्दोष, निर्मूढ और निर्भय है । __ यह आत्मा मन बचन कायों की अशुभ प्रवृत्ति रूप दण्ड से निकल चुका है-रहित है, अतः निर्दण्ड है। परमतत्त्व से अतिरिक्त समस्त परद्रव्य के संबंध से रहित होने से निर्द्वन्द्व है । मोह के उदय से हुये ममकार भाव से रहित होने से निर्मम है । कला अर्थात् शरीर इन औदारिक आदि पांच प्रकार के शरीर से रहित होने से निष्कल है । पुद्गल आदि परद्रव्यों के अवलंबन से रहित होने से निरालम्ब है।
SR No.090307
Book TitleNiyamsara Prabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages609
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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