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________________ आर्यिका माता ज्ञानमती जी हो एक ऐसी साध्वी महिला हैं जिन्होंने नियमसार की संस्कृत टीका लिखकर नारी जगत् को एक महान उच्चामन पर बैठा दिया है। यदि इस टीका को नारी जगत् के मस्तक का दीका कहा जाय तो कोई अत्युक्ति नहीं होगी। संस्कृत ग्रन्थों की टीकाएँ तो बहुत है और तरह-तरह की टीकाएँ हैं लेकिन वे सब पुरुष विद्वानों की हुई टीकाएँ। किसी महिला माध्यी द्वारा की गई यह पहली ही टोका है जो शब्द. अथं और अभिप्रायों से सम्पन्न है। आर्यिका ज्ञानमतीजी ने जो भी कार्य किये हैं वे सभी महान और अभूतपूर्व हैं। इस टोका के अतिरिक्त आपने १०८ अन्य ग्रन्थों को रचना की है, जम्बूद्वीप का निर्माण भी आप ही की सूझ-बूझ का फल है। इस नियमसार ग्रन्थ की संस्कृत टीका के लिये पुज्य माता ज्ञानमती जी का सभी जैन समाज एवं विद्वत् समाज कृतज्ञ है। डॉ. लालबहादुर शास्त्री, दिल्ली अध्यक्ष, अ०भा० दि. जैन शास्त्रि परिषद्
SR No.090307
Book TitleNiyamsara Prabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages609
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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