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________________ नियमसास्त्राभृतम् १३५ तद्यथा-भवान्तरावाप्तिः गतिः, नरकगत्यादिनामकर्मोदये नरकतिर्यमनुष्यदेवगतीनां मध्ये परिभ्रमण जीवस्य नास्ति, शुद्धनयेन शश्वत्कर्म मलैरस्पृष्टत्वात् । समर्छनात् गर्भात् उपपादात् वा शरीरेण सह य उत्पादः सैव जातिः, वृद्धावस्था जरा, दशभिः प्राणैवियोगो मरणम्, असातोदयेन शरीरवेदना व्याधिः रोगः, प्रियजनादिवियोगेन सन्तापः शोकः, इमे जन्मजरामरणरोगशोका अपि जीवस्य न संति, यत इमे कर्मोदयेन समुद्भवन्ति । जीवस्य च कर्मबन्धसम्बन्धो नास्ति, कोत्कीर्णज्ञायककशुद्धस्वभावत्वात् । कुलं जातिभेदाः कुलानि । शरीरस्य भैदानां कारणभूतनोकर्मवर्गणानां भवाः कुलानि वा । तेषां भेदाः तावत्-पृथिवीजलाग्निवायुकायिकजीवानां द्वाविंशतिसप्तत्रिसप्तलक्षकोटिकुलानि वनस्पतिकायिकानामष्टविशतिलक्षकोटिकुलानि, द्वित्रिचतुरिद्रियजीवानां सप्लाष्ट नवलक्षकोटिसंख्यानि । पञ्चेन्द्रियंषु जलचराणा सार्धशलक्षकोटयः, आकाशचरा द्वादशलक्षकोटयः, उसी को कहते हैं---एक भव से दूसरे भव को प्राप्त करना गति है । नरकगति आदि नाम कर्म के उदय से नरक, तियंच, मनुष्य और देव गतियों में जीव का परिभ्रमण नहीं है, क्योंकि यह जीव शुद्धनय की अपेक्षा सदा कर्म मल से अस्पर्शित है। सम्मर्छन से, गर्भ से या उपपाद से शरीर के साथ जो जीव का उत्पाद होता है, उसे ही जाति या जन्म कहते हैं । वृद्धावस्था का नाम जरा है, दस प्राणों से वियोग हो जाना मरण है, असाता के उदय से शरीर में वेदना व्याधि होना रोग है, अपने प्रियजनों के वियोग से संताप होना शोक है । ये जन्म, जरा, मरण, रोग, शोक भी जोब में नहीं हैं, क्योंकि ये कर्मोदय से उत्पन्न होते हैं और जीव के कर्म बंध का सम्बन्ध नहीं है, जीव तो टंकोत्कीर्ण ज्ञायक एक शुद्ध स्वभाव वाला है। जाति के भेदों को कूल कहते हैं। उनके भेदों का वर्णन इस प्रकार हैपृथ्वीकायिक के बाईस लाख कोटि, जलकायिक के सात लाख कोटि, अग्निकायिक के तीन लाख कोटि, बायुकायिक के सात लाख कोटि कूल हैं। बनस्पतिकायिक के अट्ठाईस लाख कोटि कुल हैं । दो इंद्रिय, तीन इंद्रिय और चार इंद्रिय जीवों के क्रम से सात, आठ और नव लाख कोटि कुल हैं। पंचेन्द्रियों में जल चर के साढ़े बारह लाख कोटि कुल हैं। नभचरों के बारह लाख कोटि, चार पैरवालों के अर्थात् गाय
SR No.090307
Book TitleNiyamsara Prabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages609
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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