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________________ ११६ नियमसार-प्राभूतम् कर्मभ्यः पृथग्भवेत् तत्काले एव घरमशरीरात् किंचिन्न्यूनशरीरप्रमाणपुरुषाकारो भूत्वा लोकान्तालयं गत्वा परमानन्दामृतसागरे भाविशाश्वतकालं तत्रैव राजते इति ज्ञात्वा परमपुरुषार्थबलेन निजात्मसत्तातः काणि पृथक्कर्तव्यानि भव्यजीवैः ॥३६॥ अजोवद्रव्यं व्याख्याय तदुपसंहर्तुकामा मुर्तामूर्तचेतनाचेतनरूपेण विभजन्याचार्या: पुग्गलदव्वं मुत्तं मुत्तिविरहिया हवंति सेसाणि । चेदणभावो जीवो चेदणगुणवज्जिया सेसा ॥३७॥ पुग्गलदव्वं मुत्तं-पुद्गलद्रव्यं मूर्तम् । सेसाणि मुत्तिविरहिया हवेति-शेषाणि द्रव्याणि मूर्तिविरहितानि भवन्ति । जोवो चेदणभावो-जीवः चैतन्यभावः । सेसा चेदणगुणवज्जिया-शेषाणि चैतन्यगुणवजितानि । यहाँ तात्पर्य यह निकालता कि असंख्यातप्रदेशी भी यह आत्मा कर्मोदय के वशं से छोटा या बड़ा जैसा भी शरीर प्राप्त कर लेता है, उतने मात्र में ही प्रदेशों को संकुचित करके अथवा फैलाकर रह जाता है । जब कर्मों से पृथक् हो जाता है, तब उस समय ही चरम शरीर से किचित् न्यून शरीर प्रमाण पुरुषाकार होकर लोक के अंत भाग में पहुंचकर परमानंदरूप अमृत-समुद्र में आगे शाश्वत काल तक वहीं पर स्थित रहता है। ऐसा जानकर भव्य जीवों को परम पुरुषार्थ के बल से अपनी आत्मा की सत्ता से कर्मों को पृथक कर देना चाहिए ॥३६।। ___ अजोब द्रव्य का व्याख्यान करके उसका उपसंहार करने की इच्छा से आचार्यदेव द्रव्यों में मूर्त-अमूर्त और चेतन-अचेतन का विभाजन कर रहे हैं-- __अन्वयार्थ—(पुग्गलदव्वं मुत्तं) पुद्गल द्रव्य मूर्तिक है, (संसाणि मुत्तिविरहिया हवंति) शेष द्रव्य अमूर्तिक हैं । (जीवो चेदणभावो) जीव चैतन्य भाव वाला है । (सेसा) शेष सभी द्रव्य ( चेदणगुणबज्जिया) चेतनागुण से रहित अचेतन हैं ।।३७|| टीका-पुद्गल द्रव्य मूर्तिक है, शेष द्रव्य अमूर्तिक हैं । जीव चेतन है, शेष द्रव्य अचेतन हैं।
SR No.090307
Book TitleNiyamsara Prabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages609
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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