SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 141
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ܘ;; नियमसार-प्राभृतम् अवस्थानात असंख्याता अपि कालाणवोऽस्तित्वेन विद्यन्ते फिन्तु प्रदेशप्रचयाभावात् कायसंज्ञां न लभन्ते । तात्पर्यमेतत्-द्रव्यस्यास्तिकायस्य च यथोक्तं स्वरूपं ज्ञात्वा श्रद्दधानस्य साधा मनति, तालाम्गत गोताहाताप प्रथम सोपानं इति निश्चित्य स्वश्रद्धानं दृढीकर्तव्यम ॥३४॥ __ कालस्य प्रदेशप्रचयाभावात् कायत्वं नास्ति किन्तु अन्य द्रव्याणां प्रदेशप्रचयत्वमस्त्येव, तहि न ज्ञायन्ते कस्य कियन्तः प्रदेशा इति ब्रुवन्ति सूरयः संखेज्जासंखेज्जाणंतपदेसा हवंति मुत्तस्त । धम्माधम्मस्स पुणो जीवस्स असंखदेसा हु॥३५॥ लोयायासे ताव इदरस्स अणंतयं हवे देसा। कालस्स ण कायत्तं एयषदेसो हवे जम्हा ॥३६॥ रत्नों की राशि के समान पृथक्-पृथक् स्थित रहने से असंख्यात भी कालाणु अस्तित्व रूप से विद्यमान हैं, किंतु प्रदेश-समूह का अभाव होने से 'काय' संज्ञा को नहीं प्राप्त होते हैं। तात्पर्य यह निकला कि द्रव्यों का और अस्तिकायों का आगमकथित स्वरूप जानकर श्रद्धान करने वाले को सम्यक्त्व प्राप्त होता है, वह सम्यक्त्व ही मोक्षमहल पर चढ़ने के लिये पहली सीढ़ी है, ऐसा निश्चय करके अपना श्रद्धान दृढ़ करना चाहिये । काल में प्रदेश-प्रचय का अभाव होने से कायपना नहीं है, किंतु अन्य द्रव्यों में प्रदेशों का प्रचय है ही है, तो पुनः यही नहीं मालूम हुआ कि किस किस के कितने प्रदेश है ? ऐसा पूछने पर आचार्यदेव कहते हैं अन्वयार्थ---(मुत्तस्स) मूर्तिक के (संखेज्जासंखेज्जाणतपदेसा हवन्ति) संख्यात, असंख्यात और अनंत प्रदेश होते हैं। (धम्माधम्मस्स पुणो जीवस्स) धर्म, अधर्म और जीव के (हु असंखदेसा) निश्चय से असंख्यात प्रदेश हैं। (लोयायासे ताव) लोकाकाश में भी उतने-असंख्यात प्रदेश हैं (इदरस्स अणतयं देसा हवे) अलोकाकाश के अनंत प्रदेश हैं (कालस्स कायत्तं पण) काल को कायपना नहीं है, (जम्हा एयपदेसो हवे) क्योंकि उसमें एकप्रदेश है ।।३५-३६॥
SR No.090307
Book TitleNiyamsara Prabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages609
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy