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________________ १०१ नियमसार-प्रोभृतम् अधुना पद्रव्येषु कियन्तोऽस्तिकाया इति प्रश्ने उत्तरगन्त्यावार्या: एदे छद्दव्याणि य कालं मोत्तण अस्थिकाया ति । णिहिट्ठा जिणसमए काया हु बहुप्पदेसत्तं ॥३४॥ एदे छद्दवाणि य काले मोत्तूण अस्थिकाया त्ति णिद्दिट्ठा-एते षड्दव्याणि च कालं मुक्त्वा अस्तिकाया इति निर्दिष्टाः । क्व ? जिणरूमए-जिनसमये जिनशासने । कथमेतत् ? काया हु बहुप्पदेसत्तं-कायाः खलु बहुप्रदेशत्वमिति । तद्यथा-कालमन्तरेण जीवपुद्गलधर्माधर्माकाशद्रव्याणि अस्तिकाया इति गोयन्ते, कालद्रव्यं च अस्तीति आख्यायते, किन्तु कायो नास्ति बहुप्रदेशाभावात् । अस्तीति अस्य भावः अस्तित्वम्, काया इव बहप्रदेशत्वे सति कायत्वं च । अनेना. स्तित्वेन कायत्वेन च सहिता अस्तिकायाः पञ्च द्रव्याणि । रत्नराशिरिव पृथक्-पृथक अब छह द्रव्यों में कितने अस्तिकाय हैं ? ऐसा प्रश्न होने पर आचार्य उत्तर देते हैं--- अन्वयार्थ--(जिणसमए) जिनशासन में (एदे छद्दव्याणि य) ये छह द्रव्य है (कालं मोत्तूण अत्थिकाया ति) इनमें से बाल को छोड़कर शेष पाँच द्रव्य अस्तिकाय इस प्रकार (णिट्ठिा ) कहे गये हैं (हु) क्योंकि (काया बहुप्पदेसत्तं) काय बहुप्रदेशी होते हैं ।।।३४॥ टीका-जिनशासन में काल से अतिरिक्त शेष पाँच द्रव्य अस्तिकाय कहे गये हैं, क्योंकि जो बहुप्रदेशी हो, वही काय है । इसका खुलासा इस प्रकार है-काल के बिना जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म और आकाश ये "अस्तिकाय” नाम से कहे जाते हैं और कालद्रव्य "अस्ति'' इस तरह कहलाता है, किंतु वह काय नहीं है, क्योंकि उसमें बहुत प्रदेशों का अभाव है। अस्तिकाय का लक्षण-अस्ति-है, इसका भाव अस्तित्व है और काय के समान बहुप्रदेश होने पर कायपना होता है। इस अस्तित्व और कायत्व से सहित पाँच द्रव्य अस्तिकाय कहलाते हैं।
SR No.090307
Book TitleNiyamsara Prabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages609
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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