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नियमसार-प्राभृतम् परमार्थकालः वर्तनालक्षणः, व्यवहारकालः परिणामादिलक्षणः । अथवा लोकाकाशस्य एफैकप्रदेशेष कालाणद्रव्यरूपेण व्यवस्थित समयादिकल्पनाभेदरहितः, अनाद्यनिधनो निश्चयकालः, तस्यैव पर्यायभूतः सादिसनिधनः समयनिमिषघटिकादिकल्पनारूपो व्यवहारकालो भवतीति ।
व्यवहारकालस्य द्वौ भेदी समयावलिभेवेन । यावत्कालेन एकः परमाणुः मंदगत्याऽन्यपरमाणुं लंधयति तावत्कालेन समयाख्यो व्यवहारकालः । असंख्यातसमयैरेका आवलिः। अत्रावलि इत्युपलक्षणम्, अतः आवल्याद्यनन्तभेदपर्यन्तम् कालभेदः । तद्यथा-संख्यातावलिसमूह उच्छवासः, सप्तोच्छ्यासः स्तोकः, सप्तस्तोकर्लयः, अष्टत्रिशदधलवैर्नाली, द्विनालिको मुहूर्तः, त्रिंशन्मुहूतैरहोरात्रम्, त्रिशदहोरात्रैर्मासः, द्वाभ्यां मासाभ्यां ऋतुः, त्रिभिः ऋतुभिः अयनम्, अयनद्वयन संवत्सर इत्याविसंख्येयासंख्येयानन्तगणनाप्रभेदेन व्यवहारकालः ।।
___अथवा भूतो वर्तमानो भविष्यग्निति त्रिविधः कालः । संख्यातावलिगुणितसिद्धराशिप्रमाणं भूतकालः । समयमात्रो वर्तमानकालः । सर्वजीवराशेः पुद्गलराशेश्चापि अनन्तगुणो भविष्यत्कालः ।
एक परमाणु मन्दगति से अन्य परमाणु का उल्लंघन करता है, उतना ही काल' "समय" नाम का व्यवहार काल है । असंख्यात समयों की एक "आवलि" होती है। यहाँ पर आवलि यह उपलक्षण है, अत: आवलि से लेकर अनन्तभेद पर्यंत इस व्यवहार काल के भेद होते हैं । उसी में कुछ कहते हैं--
____ संख्यात आवलि का समूह 'उच्छ्वास' है। सात उच्छ्वासों का एक 'स्तोक' होता है, सात स्तोकों का एक 'लव', साढ़े अड़तीस 'लवों' की एक नाली, या घड़ी, दो नाली का एक 'मुहूर्त', तीस मुहूर्ता का एक 'अहोरात्र', तीस अहो. रात्रों का एक 'मास', दो मासों की एक ऋतु, तीन ऋतुओं का एक 'अयन' और दो अयनों का एक 'वर्ष' होता है । इत्यादि प्रकार से संख्यात, असंख्यात और अनन्त संख्या के प्रभेदों से यह व्यवहार काल होता है ।
__ अथवा भूत, वर्तमान और भविष्यत् की अपेक्षा काल तीन प्रकार का है। संख्यात आवलि से गणित सिद्धराशि प्रमाण भूतकाल है। एक समय मात्र वर्तमान काल है और सर्वजीवराशि तथा सर्वपुद्गलराशि से भी अनंतगुणा भविष्यत्काल है।