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________________ वह कभी राजा का अनर्थ भी कर सकता है। नौवकुल वाले राजमन्त्री आदि कालान्तर में राजा पर आपत्ति आने पर पागल कुत्ते के विष की भांति विरुद्ध हो जाते हैं। ( १०, १६ ) । कुलीन व्यक्ति की प्रशंसा करते हुए सोमदेव लिखते हैं कि जिस प्रकार अमृत विष नहीं हो सकता, उसी प्रकार उच्चकुल वाला मत्री कभी विश्वासघात नहीं कर सकता (१०, १७ ) । शुक्र ने भी कुलीनता के सिद्धान्त पर विशेष बल दिया है । वे लिखते हैं कि मन्त्रिपरिषद् के सदस्य उच्चकुल के होने चाहिए। रामायण तथा महाभारत में भी कुलीनता के सिद्धान्त का प्रतिपादन हुआ है। मनु तथा याज्ञवल्क्य भी कुलीनता पर बल देते हैं ।" इस प्रकार प्राचीन भारत में उन्हीं व्यक्तियों को मन्त्री पद पर नियुक्त किया जाता था जो अन्य गुणों के साथ ही उच्चवंश से सम्बन्धित ५ होते थे । ܀ ३. स्वदेश वासी मन्त्री के लिए स्वदेशज की शर्त भी आवश्यक यो मह सिद्धान्त आधुनिक युग में भी माना जाता है । सोमदेव का कथन है कि समस्त पक्षपातों में अपने देश का पक्ष महान होता है ( १०, ६ ) । इस का यही अभिप्राय है कि मन्त्री अपने ही देश का होना चाहिए। विदेशी को यदि मन्त्री आदि उच्चपद पर नियुक्त कर दिया जायेगा तो प्रत्येक बात ने ही देश का गलेगा इस प्रकृति से वह जिस राज्य में मन्त्री पद पर आसीन है उस का अहित भी कर सकता है । अतः मन्त्री के लिए स्वदेशवासी होने का प्रतिबन्न सभी आचायों ने लगाया है। महाभारत में इस प्रकार का उल्लेख मिलता है कि विदेशी चाहे विभिन्न गुणों से विभूषित हो क्यों न हो, किन्तु उसे मन्त्र सुनने का अधिकार नहीं है। आगे यह भी लिखा है कि मन्त्रियों को स्वदेशवासी हो होना चाहिए। आचार्य कौटिल्य भी इस सिद्धान्त में विश्वास रखते है । - १२ ४. चारित्रवान् — उपर्युक्त गुणों के साथ ही मन्त्री के लिए सदाचारी होना भो परम आवश्यक था। व्यक्तित्व का प्रभाव जनता पर पड़ता है। व्यक्तित्व का निर्माण तथा उस का प्रभावशाली होना व्यक्ति के चरित्र पर ही निर्भर है। इसी हेतु मन्त्रियों के लिए चारित्रवान् होना भी एक आवश्यक योग्यता मानी गयी थी । आचार्य सोमदेव का कथन है कि राजा सदाचारी होना चाहिए, अन्यथा उस के दुराचारी होने से राजवृक्ष का मूल ( राजनीतिकज्ञान) और सैनिक संगठन आदि सद्गुणों के अभाव में राज्य की क्षति अवश्यम्भावी है ( १०, ७ ] । स्मृतिकारों ने भी यह बात स्पष्ट रूप से लिखी है कि मन्त्रिपरिषद् के सदस्य ९. शुक्र० २८ । २. गाण अवोध्या काण्ड १०० १५ । महा० शान्०ि ८३, १६ । ३. मनु०, ७५४ ० १ ३१२ तथा ७-कौ० अर्ध० ८.६ । ४. महा० शान्ति० ८३, ३८ ॥ . नातिवाक्यामृत में राजनीति
SR No.090306
Book TitleNitivakyamrut me Rajniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM L Sharma
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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