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________________ स्वामिभक्त, नीतिज्ञ, मुद्ध-विद्याविशारद और निष्कपट होना चाहिए (१०, ५)। इन . गुणों से विभूषित प्रधानमन्त्री के सहयोग से ही राज्य को श्रीवृद्धि हो सकती है, ऐसा आचार्य का विचार था। आचार्य कौटिल्य ने भी प्रधानमन्त्री के गुणों का वर्णन इसी प्रकार किया है। कौटिल्य लिखते हैं कि प्रधानमन्त्री में निम्नलिखित गुण होने चाहिए... "राजा के हो देश में उत्पन्न, उत्तमकुल में जायमान, जो अपने को तथा और को बुराई से दूर रख सके, शिल्य तथा संगीत आदि में पारंगत, अर्थशास्त्र रूपी सूक्ष्म दृष्टि से सम्पन्न, प्रायः बाला, लायी। पकाने की सास , शीघ्र कार्य पूर्ण करने में समर्थ, वाक्पटु, किसी भी विषय को भली-भांति व्यक्त करने के साहस से सम्पन्न, युक्तियों तथा तों द्वारा अपनी बात समझाने में समर्थ, उत्साही, ' प्रभावशाली, कष्टसहिष्णु, पवित्र आचरण वाला, स्नेही, राजा अथवा स्वामी के प्रति भक्ति रखने वाला, शीलवान, बलवान, आरोग्यवान, धैर्यवान् , गवरहित, चपलवाशुन्य, सौम्याकृति वाला और शत्रुत्व भाव से रहित पुरुष ही प्रधान मन्त्री बनने के योग्य होता है। जिन में उपर्युक्त गुणों का एक चतुर्थाश कम हो वे मध्यम श्रेणी के और जिन में आधे गुण हों बे निम्न श्रेणी के मन्त्री माने जाते है ।'' मनु, कामन्दक, शुक्र तथा याज्ञवल्क्य आदि ने भी मन्त्रियों को योग्यताओं के विषय में पर्याप्त प्रकाश डाला है। १. द्विजाति का विधान-सोमदेवसूरि ने प्राचीन आचार्यों की भांति ही द्विजवर्ण के पुरुषों को ही मन्त्री पद पर नियुक्त करने का उल्लेख किया है (१०.५)। श्राह्मण, क्षत्रिय तथा वैश्य ही इस पद पर नियुक्त किया जा सकता था । किन्तु शूद उपर्युक्त गुणों से सम्पन्न होने पर भी इस पद का अनधिकारी था। इस का कारण यह था कि द्विज वर्ण के लोगों में उच्च संस्कारों के कारण उक्त गुणों का सूजन स्वाभाविक रूप से होता है । यद्यपि सोमदेव का दृष्टिकोण बहुत विशाल था, किन्तु उन्होंने शूद्र को इस पद पर नियुक्त करने का निषेध इसी कारण किया है कि वे वैदिक वर्णाश्रम व्यवस्था में आस्थावान् थे, जिस के अनुसार शूद्र का धर्म द्विजाति को सेवा करना ही था। २. कुलीनता-उच्चकुल में उत्पन्न हुए व्यक्ति को ही इस पद पर नियुक्त किया जाता था। अपच कुल में जन्म लेने वाले व्यक्ति से उत्तम आचरण की सम्भावना अधिक होती है। सोमदेव लिखते है कि नीषकुल वाला मन्त्री राजा से द्रोह कर के भो मोह के कारण किसी से भी लज्जा नहीं करता ( १०, ८)। इस में वर्क यही है कि कुलीन व्यक्ति से यदि अज्ञानतावश कोई अपराध हो भी जाता है तो वह अवश्य हो लज्जित होता है, परन्तु नीच कुल वाला व्यक्ति निर्लज्ज होता है । इसलिए १. कौ० अर्थ०१६। २. मनु०७,५४, कामन्दक ४, २५-३०, शु० २,८-६. याज्ञ२ १, ३१२-३१३ । मन्त्रिपरिषद्
SR No.090306
Book TitleNitivakyamrut me Rajniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM L Sharma
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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