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________________ सुपरीक्षित एवं चारित्रवान् व्यक्ति होने चाहिए। महाभारत में भी मन्त्रियों को योग्यता के विषय में यह उल्लेख मिलता है कि सचिव ऐसे होने चाहिए जो काम, क्रोध, लोभ और भय आदि विकारों से ग्रसित होने पर भी धर्म का त्याग न करें। ५. निर्व्यसनता-मन्त्री के लिए यह भी आवश्यक था कि वह सर्वथा नियंसन हो। यसनग्रस्त मन्त्री किसी भी कार्य को ठीक प्रकार से नहीं कर सकता। उस से राज्य का हित कभी नहीं हो सकता, क्योंकि यह व्यसनों का दास हो जाता है। व्यसनी व्यक्ति को उचित और अनुचित का भी जान नहीं रहता। आचार्य सोमदेव का कथन है कि जिस राजा का मन्त्री श्रुतकीड़ा, मद्यपान और परकला सेवन आदि व्यसनों से अनुरक्त है वह राजा पागल हाथो पर आरूक व्यक्ति की तरह शीन ही नष्ट हो जाता है। इस कथन का प्राशय यहो है कि व्यसनो मन्त्री राजा को उचित परामर्श नहीं दे सकता तथा वह शत्रुपक्ष से भी मिल सकता है। ऐसे मन्त्री के परामर्श से राजा पथभ्रष्ट होकर विनाश को प्राप्त हो जाता है । अतः मन्त्री को सब प्रकार के व्यसनों से मुक्त होना चाहिए। ६. राजभक्ति-राजभक्ति भी मन्त्री के लिए मावश्यक गुण माना गया है। अपने स्वामी से द्रोह करने वाले मन्त्री एवं सेवकों की नियुक्ति करना निरर्थक है (१०, १०) । आचार्य शुक्र का कथन है जो विपत्ति पड़ने पर स्वामी से प्रोह करता है उस मन्त्री से राजा को क्या लाभ है चाहे ऐसा व्यक्ति ( मन्त्री ) सर्वगुणसम्पन्न ही क्यों न हो ।' सोमदेव का कथन है कि सुख के समय पर सभी सहायक हो जाते है किन्तु विपत्ति काल में कोई सहायक नहीं होता। अत: विपत्ति में सहायता करने वाला पुरुष ही राजमन्त्री पद के योग्य है अन्य नहीं ( १०, ११ ) । आचार्य कौटिल्य भी अमात्यों के लिए राजभक्ति के गुण को आवश्यक मानते हैं।' ७. नीतिज्ञता-राज्य को उन्नति एवं विकास कुशल नीति पर ही अवलम्बित है। इसी करण आचार्य सोमदेव ने मन्त्री के लिए नोसिश होना भी परम आवश्यक बतलाया है (१०,५)। नोतिकुशल मन्त्री ही राज्य का कल्याण कर सकता है, आचार्य का कथन है कि राजा हित साधन और अहित प्रतिकार के उपायों को नहीं जानता किन्तु केवल उस की भक्ति मात्र करता है उसे मन्त्री बनाने से राज्य की अभिवृद्धि नहीं हो सकती [ १०,१२)। अतः सजा का यह कर्तव्य है कि वह राजनीतिविशारद एवं कर्तव्य परायण व्यक्ति को ही अपना मन्त्री समाये । ८. युद्धविद्या विशारद-मन्त्री के लिए विविष अस्त्र-शस्त्रों के प्रयोग में निपुण, निर्भीक एवं उत्साही होना भी आवश्यक है । शस्त्र विद्या का शाता होने पर भी --... १. मनु०७,५८६०। २. महान शान्ति० ८३, २६। ३. शुक्र-नोतिबा० ० ११० । १. कौ० अर्थ ०.१. मन्त्रिपरिषद्
SR No.090306
Book TitleNitivakyamrut me Rajniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM L Sharma
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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