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________________ कोष ११७-१३० कोष की परिभाषा : ११७, कोप का महत्त्व : ११७, उत्तम कोष : ११८, कोषविहीन राजा : १११, रिक्त राजकोष की पूर्ति के उपाय : १२०, आय-व्यय : १२०, राज-कर के सिद्धान्त : १२१, राष-कर साधन था न कि साध्य : १२३, राज-कर राजा का वेतन था: १२३, आय के स्रोत : १२४, कृषक वर्ग के प्रति उदारता : १२४, अन्य प्रकार के कर : १२५, आयात और निर्यात कर : १२५, शुल्क स्थानों की सुरक्षा : १२५, राज्य की आय के अन्य साधन : १२६, उत्कोच लेने वाले राज्याधिकारियों से धन प्राप्त करने के उपाय१. नित्य परीक्षण : १२६, २. कर्मविपर्यय : १२६, ३. प्रलिपत्रदान : १२७, राजस्व विभाग के अधिकारी : १२७, आय-व्यय लेखा : १२८, व्यापारी वर्ग पर राजकीय नियन्त्रण : १२८ । सेना अथवा बल १६-८ हाथियों के गुण : ५३२, अशिक्षित हापी : १३२, हाथियों के कार्य : १३२, अश्वों की जालिया : १३४, रथसेना : १३५, सेनाध्यक्ष : १३६, औत्साहिक सैन्य के प्रति राजा का कर्तव्य : १३७, सेना के राजा के विरुद्ध होने के कारण : १३७, सेवकों का वेतन तथा उन के कर्तव्य : १३८, कृपण राजा को हानि : १३८ । राष्ट्र १३९-१५१ भारतीय साहित्य में जनपद शब्द का प्रयोग : १४४, अनपद के गुण : १४८, देश के दोष : १४९, देश को जनसंख्या के विषय में विचार : १५०, जनपद का संगठन : १५०, ग्राम संगठन : १५० । ' अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध १५२-१७२ दूत को परिभाषा : १५३, दूत के गुण : १५४, दूतों के भेद : १५४, दूत के कार्य : १५४, घर : १५५, घरों की नियुक्ति : १५५, चरों के भेद : १५६, सामन्त शासकों के साथ सम्बन्ध : १५६, युट काल में अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध : १५७, मण्डल सिद्धान्त : १५८१. उदासीन : १५८, २. मध्यस्थ : १५८, ३. विजिगीषु : १५८, ४. शत्रु : १५९, ५. मित्र : १५९-१. नित्य मित्र : १५९, २. सहम मित्र : १५९, ३. कृत्रिम मित्र : १५९, ६. पाणिग्राह : १६०, ७. पाकन्द : १६०, ८. आसार : १६०, ९. अन्तधि : १६०, सोन
SR No.090306
Book TitleNitivakyamrut me Rajniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM L Sharma
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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