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सोमदेव के अनुसार राजा की योग्यताओं अथवा गुणों का विवेचन : ६८, राजा के दोष ७०, सोमदेव के अनुसार राजा के दोषों का विवेचन : ७१, राजा के कर्तव्य - १. प्रजा को रक्षा एवं पालनपोषण: ७३, २. सामाजिक व्यवस्था की स्थापना ७४, ३ आर्थिक कर्तव्य : ७५, ४. प्रशासकीय कर्तव्य ७५, ५ न्याय सम्बन्धी कर्तव्य : ७७, राज- रक्षा: ७७ राजा का उत्तराधिकारी ८०, राजस्व के उच्च आदर्श ८३ ।
मन्त्रिपरिषद्
दुर्म
८७-१०९
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राजशासन में मन्त्रिपरिषद् का महत्व ८७, मन्त्रिपरिषद् की रचना : ८९, मन्त्रियों की नियुक्ति ९०, मन्त्रिपरिषद् के सदस्यों की योग्यता१. द्विजाति का विधान ९१, २. कुलीनता : ११, ३. स्वदेश वासी : ९२, ४. चारित्रवान् ९२, ५ निर्व्यसनता : ९३, ६ राजभक्ति : ९१५ नोव या विशारद : ९३, ९. निष्कपटता ९४, मन्त्रिपरिषद् के सदस्यों की संख्या : ९४ मन्त्र का प्रधान प्रयोजन ९६, मन्त्र के अंग- १. कार्य प्रारम्भ करने के उपाय : ९७, २. पुरुष और द्रव्य सम्पत्ति ९७, ३. देश और काल : ९७, ४ विनिपात - प्रतिकार : ९७ ५. कार्यसिद्धि: ९७, मन्त्रणा के अयोग्य व्यक्ति ९७ मन्त्र के लिए उपयुक्त स्थान: १९, गुल मन्त्रणा प्रकाशित हो जाने के कारण ९९, मन्त्रणा के समय मन्त्रियों के कर्तव्य : १०१, मन्त्रिपरिषद् के कार्य : १०२ राजा और मन्त्रिपरिषद् १०४, अमात्यों के दोष -- १. अत्यन्त क्रोधी : १०६, २. बलिष्ठ पक्ष वाला १०६, ३. अपवित्र १०६ ४ व्यसनी : १०६, ५ अकुलीन : १०६, ६. हठी : १०६, ८. कृपण, १०६, अधिकारी बनाने योग्य व्यक्ति सहपाठी को अधिकारी बनाने का निषेध : १०७, दोष १०८, राज्याधिकारियों के धनवान् होने का निषेध : १०९, राज्याधिकारियों की स्थायी नियुक्ति का निषेध : १०९ ।
७. विदेशी : १०६, १०७, कुटुम्बी और अमात्यों के अन्य
११०-११६
राजधानी : १११, दुर्ग का महत्य : ११२, दुर्ग के भेद : ११२ - प्रोदक, पर्वतदुर्ग, धन्यदुर्ग, वनदुर्ग : ११३, दुर्ग के गुण अधिकार करने के उपाय : ११४- १. अभिगमन ३. चिरनिबन्ध, ४ अवस्कन्द, ५. तीक्ष्णपुरुषप्रयोग ११५ ।
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११४, शत्रुदुर्ग पर
११४, २. उपजाप,