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शक्तियों का सिद्धान्त १६१, चार उपाय १६१, सामनीति : १६२ - १. गुण संकीर्तन, २. सम्बन्धोमास्यान, २ परोपकार दर्शन, ४. आयत प्रदर्शन, ५. आत्मोपसन्धान १६२, दामनीति: १६२, भेदनीति: १६३, दण्डनीति: १६३, षाड्गुण्य मन्त्र : १६३ - १. सन्धि १६४ २. विग्रह १६५, ३. यान १६५, ४. आसन : १६५, ५. संभय १६६, ६. घोभाग १६६, युद्ध : १६७, युद्ध के सम्बन्ध में विजिगीषु के लिए कुछ निर्देश : १६७, सैन्य संगठन १६८, युद्ध के भेद : १६९, धर्मयुद्ध १६९, युद्ध के लिए प्रस्थान १७०, न्यूह और उस का महत्व: १७० युद्ध के नियम १७१, विजय के उपरान्त विजिगीषु का कर्तव्य : १७१, युद्ध में मारे गये सैनिकों की सन्तति के प्रति राजा का कर्तव्य : १७२ ।
न्याय-व्यवस्था
१७३-१८२
न्यायालय १७३, सभ्यों की योग्यता एवं नियुक्ति १७५, अपराध की परीक्षा किये बिना दण्ड देने का निषेध १७५, कार्यविधि : १७६, बाद के चरण १७६, प्रतिज्ञा १७७, प्रमाण १७७, शपथ : १७७, विभिन्न वर्णों से भिन्न-भिन्न प्रकार की शपन का विधान : १७८, क्रिया १७८, निर्णय १७९, विधान १७५, दण्ड का प्रयोजन : १८०, भय कथवा आतंक स्थापित करने का सिद्धान्त : १८० निरोधक सिद्धान्त : १८०, सुधारवादी सिद्धान्त : १८०, उचित दण्ड पर बल : १८१, पुनर्विचार तथा पुनरावेदन : १८२ ।
निष्कर्ष
नीतिवाक्यामृत का मूल सूत्रपाठ
१८३-१९०
१९१-२४८